________________ पंचम शतक : उद्देशक-१] [ 403 का संक्षिप्त दिग्दर्शन कराया गया है, ताकि पाठक यह स्पष्टतया समझ सकें कि प्रथम उद्देशक में वणित विषयों का निरूपण चम्पानगरी में हुआ था।' चम्पानगरी : तब जौर अब-औपपातिक सूत्र में चम्पानगरी का विस्तृत वर्णन मिलता है, तदनुसार 'चम्पा' ऋद्धियुक्त, स्तमित एवं समृद्ध नगरी थी। महावीर-चरित्र के अनुसार अपने पिता श्रेणिक राजा की मृत्यु के शोक के कारण सम्राट् कोणिक मगध की राजधानी राजगृह में रह नहीं सकता था, इस कारण उसने वास्तुशास्त्रियों के परामर्श के अनुसार एक विशाल चम्पावृक्ष बाले स्थान को पसंद करके अपनी राजधानी के हेतु चम्पानगरी बसाई। इसी चम्पानगरी में दधिवाहन राजा की पुत्री चन्दनबाला का जन्म हुचा था। पाण्डवकुलभूषण प्रसिद्ध दानवीर कर्ण ने इसी नगरी को अंगदेश की राजधानी बनाई थी। दशवकालिक सूत्र-रचयिता प्राचार्य शय्यंभव सूरि ने राजगह से आए हुए अपने लघुवयस्क पुत्र मनक को इसी नगरी में दीक्षा दी थी और यहीं दशवकालिक सूत्र की रचना की थी। बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य स्वामी के पांच कल्याणक इसी नगरी में हुए थे। इस नगरी के बंद हुए दरवाजों को महासती सुभद्रा ने अपने शील की महिमा से अपने कलंक निवारणार्थ कच्चे सत की चलनी बांध कर उसके द्वारा कए में से पानी निकाला और तीन दरवाजों पर छींट करा उन्हें खोला था। चौथा दरवाजा ज्यों का त्यों बंद रखा था। परन्तु बाद में वि. सं. 1360 में लक्षणावती के हम्मीर और सुलतान समदीन ने शंकरपुर का किला बनाने हेतु उपयोगी पाषाणों के लिए इस दरवाजे को तोड़ कर इसके कपाट ले लिये थे / वर्तमान में चम्पानगरी चम्पारन कस्बे के रूप में भागलपुर के निकटवर्ती एक जिला है / महात्मा गाँधीजी ने चम्पारन में प्रथम सत्याग्रह किया था / जम्बूद्वीप में सूर्यों के उदय-अस्त एवं रात्रि-दिवस से सम्बन्धित प्ररूपणा 3. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवतो महावीरस्स जे? अंतेवासी इंदभूती णामं अणगारे गोतमे गोत्तेणं जाव एवं वदासी [3] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी (शिष्य) गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति अनगार थे, यावत् उन्होंने इस प्रकार पूछा 4. जंबुद्दोवे भंते ! दीवे सूरिया उदीण-पादीणमुग्गच्छ पादीण-दाहिणमागच्छति ? पादीण-दाहिणमुगच्छ दाहिण-पडोणमागच्छंति ? दाहिण-पडोणमुगच्छ पड़ीण-उदोणमागच्छंति ? पडीण-उदीणमुग्गच्छ उदोचि-पादीणमागच्छंति ? 1. भगवती सुत्र अ.वत्ति, पत्रांक 207 2. (क) जिनप्रभसू रिरनित 'चम्पापुरीकल्प' (ख) हेमचन्द्राचार्यरचित महावीरचरित्र सर्ग 12, श्लोक 180 से 189 तक (ग) प्राचार्य प्राय्यभवसूरिरचित परिशिष्टपर्व सर्ग 5, श्लोक 68,80, 85 (घ) भगवतीसूत्र (टीकानुवाद टिप्पणयुक्त) खण्ड 2, पृ. 144 3. 'जाव' पद से गौतम स्वामी का समस्त वर्णन एवं उपासनादि कहना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org