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________________ पंचमं सयं : पंचम शतक पंचम शतक की संहग्रणी गाथा 1. चंप रवि 1 प्रणिल 2 गंठिय 3 सद्दे 4 छउमायु 5-6 एयण 7 णियंठे 8 / रायगिह 6 चंपाचंदिमा 10 य दस पंचमम्मि सते // 1 // [1] (गाथा का अर्थ)----पांचवें शतक में ये दस उद्देशक है-प्रथम उद्देशक में चम्पा नगरी में सूर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं। द्वितीय उद्देशक में वायु-सम्बन्धी प्ररूपण है। तृतीय उद्देशक में जालग्रन्थी का उदाहरण देकर तथ्य का निरूपण किया है / चतुर्थ उद्देशक में शब्द-सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं। पंचम उद्देशक में छद्मस्थ के सम्बन्ध में वर्णन है। छठे उद्देशक में प्रायुष्य की वृद्धि-हानि-सम्बन्धी निरूपण है। सातवें उद्देशक में पुद्गलों के कम्पन का वर्णन है। आठवें उद्देशक में निर्गन्थी-पुत्र अनगार द्वारा पदार्थ-विषयक विचार किया है। नौवें उद्देशक में राजगृह नगर सम्बन्धी पर्यालोचन है और चम्पानगरी में वर्णित चन्द्रमा-सम्बन्धी प्ररूपणा है। पढमो उद्देसओ : रवि प्रथम उद्देशक : रवि प्रथम उद्देशक का प्ररूपरणा-स्थान : चम्पानगरी 2. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नगरी होत्था।' वण्णो / तोसे णं चंपाए नगरीए पुण्णमद्दे नामे चेतिए होत्था।' वण्णओ। सामी समोसढे जाव' परिसा पडिगता। [2] उस काल और समय में चम्पा नाम की नगरी थी। उसका वर्णन प्रौपपातिक सूत्र के अनुसार जानना चाहिए। उस चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र नाम का चैत्य (व्यन्त रायतन) था / उसका भी वर्णन औषपातिक सूत्र से जान लेना चाहिए। (एक बार) वहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे, (समवसरण लगा)"यावत् परिषद् भगवान् को वन्दन करने और उनका धर्मोपदेश सुनने के लिए गई और यावत् परिषद् वापस लौट गई। विवेचन-प्रथम उद्देशक का प्ररूपण-स्थान : चम्पानगरी-प्रस्तुत सूत्र में प्रथम उद्देशक के उपोद्घात में चम्पानगरी में, पूर्णभद्र नामक व्यन्तरायतन में भगवान् महावीर के पदार्पण, समवसरण, दर्शन-वन्दनार्थ परिषद् का आगमन तथा धर्मोपदेश श्रवण के पश्चात् पुनः गमन आदि 1. चम्पानगरी और पूर्णभद्र चैत्य का वर्णन औपपातिक सूत्र से जान लेना। 2. यहाँ जाव शब्द से परिषद्-निर्गमन से लेकर प्रतिगमन तक सारा वर्णन पूर्ववत् / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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