________________ पंचमं सयं : पंचम शतक प्राथमिक * व्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवती सूत्र का यह पंचम शतक है / इस शतक में सूर्य, चन्द्रमा, छद्मस्थ एवं केवली की ज्ञानशक्ति, शब्द, आयुष्य वृद्धि-हानि आदि कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया है / इस शतक के भी दस उद्देशक हैं / प्रथम उद्देशक के प्ररूपण स्थान-चम्पानगरी का वर्णन करके विभिन्न दिशाओं-विदिशाओं से सुर्य के उदय-अस्त का एवं दिन-रात्रि का प्ररूपण है। फिर जम्बूद्वीप में दिवस-रात्रि कालमान का विविध दिशानों एवं प्रदेशों में ऋतु से लेकर उत्सपिणीकाल तक के अस्तित्व का तथा लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि एवं पुष्कराद्ध में सूर्य के उदयास्त आदि का विचार किया गया है। द्वितीय उद्देशक में विविध पहलुओं से चतुविध वायु का, चावल आदि की पूर्व-पश्चादवस्था का, अस्थि, अंगार आदि की पूर्व-पश्चादवस्था का, तथा लवण-समुद्र को लम्बाई-ऊँचाई संस्थान आदि का निरूपण है। ततीय उद्देशक में एक जीव द्वारा एक समय में इह-पर (उभय) भव सम्बन्धी आयुष्यवेदन के मत का निराकरण करके यथार्थ प्ररूपणा तथा चौबीस दण्डकों और चतुर्विध योनियों की अपेक्षा आयुष्य-सम्बन्धी विचारणा की गई है। चतुर्थ उद्देशक में छद्मस्थ और केवली की शब्दश्रवणसम्बन्धी सीमा तथा हास्य-औत्सुक्य, निद्रा, प्रचला सम्बन्धी विचारणा की गई है। फिर हरिणगमैषी देव द्वारा गर्भापहरण का, अतिमुक्तक कुमारश्रमण की बालचेष्टा एवं भगवत्समाधान का, देवों के मनोगत प्रश्न का भगवान् द्वारा मनोगत समाधान का, देवों को 'नो-संयत' कहने का, देवभाषा का, केवली और छमस्थ के अन्तकर आदि का, केवली के प्रशस्त मन-वचन का, उनके मन-वचन को जानने में समर्थ वैमानिक देव का, अनुत्तरोपपातिक देवों के असीम-मनः सामर्थ्य तथा उपशान्तमोहत्व का, केवली के प्रतीन्द्रियप्रत्यक्ष का, अवगाहन सामर्थ्य का तथा चतुर्दशपूर्वधारी के लब्धि-सामर्थ्य का निरूपण है। पंचम उद्देशक में सर्वप्राणियों के एवम्भूत-प्रनेवम्भूत वेदन का, तथा जम्बूद्वीप में हुए कुलकर, तीर्थंकर आदि श्लाध्य पुरुषों का वर्णन है / * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org