________________ नवमो उद्देसओ : इंदिय नवम उद्देशक : इन्द्रिय पंचेन्द्रिय-विषयों का अतिदेशात्मक निरूपण 1. रायगिहे जाव एवं वदासी-कतिविहे णं भंते ! इंदियविसए पण्णत्ते ? गोयमा! पंचविहे इंदियविसए पण्णत्ते, तं०–सोतिदियविसए, जीवाभिगमे जोतिसियउद्देसो नेयम्वो अपरिसेसो। / तइयसए : नवमो उद्देसमो समत्तो॥ [1 प्र.] राजगृह नगर में यावत् श्रीगौतमस्वामी ने इस प्रकार पूछा--भगवन् ! इन्द्रियों के विषय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? / [1 उ.] गौतम ! इन्द्रियों के विषय पाँच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैंश्रोत्रेन्द्रिय-विषय इत्यादि / इस सम्बन्ध में जीवाभिगमसूत्र में कहा हुआ ज्योतिष्क उद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिए। विवेचन-पांच इन्द्रियों के विषयों का अतिदेशात्मक वर्णन-प्रस्तुत सूत्र में जीवाभिगम सूत्र के ज्योतिष्क उद्देशक का अतिदेश करके शास्त्रकार ने पंचेन्द्रिय विषयों का निरूपण किया है। जीवाभिगम सूत्र के अनुसार इन्द्रिय विषय-सम्बन्धी विवरण-- पांच इन्द्रियों के पांच विषय हैं; यथा-श्रोत्रेन्द्रिय-विषय, चक्षुरिन्द्रिय-विषय, घ्राणेन्द्रिय-विषय, रसेन्द्रिय-विषय और स्पर्शेन्द्रियविषय। [प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियविषय-सम्बन्धी पुद्गल-परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम! दो प्रकार का कहा गया है / यथा-शुभशब्द परिणाम और अशुभशब्द परिणाम। [प्र. भगवन् ! चक्षुरिन्द्रिय-विषय-सम्बन्धी पुद्गल-परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है / यथा-सुरूप-परिणाम और दुरूपपरिणाम / [प्र.] भगवन् ! घ्राणेन्द्रिय-विषय-सन्बन्धी पुद्गल-परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है। [उ.] गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है। यथा-सुरभिगन्ध परिणाम और दुरभिगन्ध परिणाम / 1. जीवाभिगम सूत्र प्रतिपति 3, उह शक 2 सू. 191, पृ. 373-374 में इसका वर्णन देखिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org