________________ 386 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ज्योतिष्क देवों के अधिपति इन्द्रज्योतिष्क देवों में अनेक सूर्य एवं चन्द्रमा इन्द्र हैं। वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों में लोकपाल नहीं होते।' वैमानिक देवों के अधिपति–इन्द्र एवं लोकपाल-वैमानिक देवों में सौधर्म से लेकर अच्युतकल्प तक प्रत्येक अपने-अपने कल्प के नाम का एक-एक इन्द्र है / यथा-सौधर्मेन्द्र =शकेन्द्र, ईशानेन्द्र, सनत्कुमारेन्द्र आदि / किन्तु ऊपर के चार देवलोकों में दो-दो देवलोकों का एक-एक इन्द्र है; यथा-. नौवें और दसवें देवलोक-(आणत और प्राणत) का एक ही प्राणतेन्द्र है / इसी प्रकार ग्यारहवें और बारहवें देवलोक-(प्रारण और अच्युत) का भी एक ही अच्युतेन्द्र है / इस प्रकार बारह देवलोकों में कुल 10 इन्द्र हैं। नौ न बेयेकों और पांच अनुत्तर विमानों में कोई इन्द्र नहीं होते / वहाँ सभी 'अहमिन्द्र' (सर्वतन्त्रस्वतंत्र) होते हैं। सौधर्म प्रादि कल्पों के प्रत्येक इन्द्र के आधिपत्य में सोम, यम आदि चार-चार लोकपाल होते हैं, जिनके आधिपत्य में अन्य देव होते हैं / // तृतीय शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त // (क) तत्त्वार्थसूत्र अ. 4 सू. 6 का भाज्य, पृ. 92 (ख) 'त्रास्त्रिश-लोकपालवा व्यन्तरज्योतिटका:-तत्त्वार्थसूत्र अ. 4 सु. 5, भाष्य पृ. 92 2. (क) तत्त्वार्थ. भाष्य अ. 4 सू. 6, पृ. 93, (ख) भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक 201 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org