________________ 381 तृतीय शतक : उद्देशक-७] कठिन शब्दों को व्याख्या-हिरण्णवासा = झरम र झरमर बरसती हुई घड़े हुए सोने की या चांदी की वर्षा तथा हिरण्णबुट्ठी-तेजी से बरसती हुई बड़े हुए सोने या चांदी की वर्षा वृष्टि कहलाती है। यही वर्षा और वृष्टि में अन्तर है। सुभिक्खा-दुभिक्खा = सुकाल हो या दुष्काल / 'निहीति वा निहाणाति वा' = लाख रुपये अथवा उस से भी अधिक धन का एक जगह संग्रह करना निधि है, और जमीन में गाड़े हुए लाखों रुपयों के भण्डार या खजाने निधान कहलाते हैं। पहोणसेउयाई = जिसमें धन को सींचने (या बढ़ाने) वाला मौजूद नहीं रहा। पहीणमग्गाणि = इतने पुराने हो गए हैं, कि जिनकी तरफ जाने-आने का मार्ग भी नष्ट हो गया है; अथवा उस मार्ग की ओर कोई जाता-याता नहीं। पहीणगोत्तागाराई = जिस व्यक्ति ने ये धन-भंडार भरे हैं, उसका कोई गोत्रीय सम्बन्धी तथा उसके सम्बन्धी का घर तक अब रहा नहीं।' // तृतीय शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त / / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक 200 (ख) भगवती, टीकानुवाद युक्त, खण्ड 2, पृ. 120 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org