________________ अट्ठमो उद्देसओ : 'अहिवई' अष्टम उद्देशक : अधिपति भवनपति देवों के अधिपति के विषय में प्ररूपण-- 1. रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी-प्रसुरकुमाराणं भंते ! देवाणं कति देवा आहेवच्चं जाव विहरंति ? ___ गोयमा ! दस देवा पाहेवच्चं जाव विहरंति, तं जहा–चमरे असुरिंदे असुरराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे, बली वइरोणिदे वइरोयणराया, सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे / [1 प्र.] राजगृह नगर में, यावत् पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा-'भगवन् ! असुरकुमार देवों पर कितने देव प्राधिपत्य करते रहते हैं ?' [1 उ.] गौतम ! असुरकुमार देवों पर दस देव आधिपत्य करते हुए यावत् रहते हैं / वे इस प्रकार हैं-असुरेन्द्र असुरराज चमर, सोम, यम, वरुण, वैश्रमण तथा वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि, सोम, यम, वरुण और वैश्रमण / 2. नागकुमाराणं भंते ! पुच्छा। गोयमा ! दस देवा प्राहेवच्चं नाव विहरंति, तं जहा–धरणे नागकुमारिदे नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले सेलवाले, संखवाले, भूयाणंदे नागकुमारिदे नागकुमारराया, कालवाले, कोलवाले, संखवाले, सेलवाले। [2 प्र.] भगवन् ! नागकुमार देवों पर कितने देव आधिपत्य करते हुए, यावत् विचरते हैं ? [2 उ.] हे गौतम ! नागकुमार देवों पर दस देव आधिपत्य करते हुए, यावत् विचरते हैं। वे इस प्रकार हैं-नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण, कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल / तथा नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज भूतानन्द, कालपाल, कोलपाल, शंखपाल और शैलपाल / 3. जहा नागकुमारिदाणं एताए वत्तव्वताए गोयं एवं इमाणं नेयवं सुवष्णकुमाराणं वेणुदेवे, वेणुदाली, चित्ते, विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे / विज्जुकुमाराणं हरिक्त, हरिस्सह, पभ, सुप्पभ, पभकंत, सुप्पभकंत / अग्गिकुमाराणं अम्गिसीहे, अग्गिमाणव, तेउ, तेउसीहे, तेउकते, तेउप्पमे / दोषकुमाराणं पुण्ण, विसिट्ठ, रूय, सुरूय, रूयकत, रूयप्पभ / उदहिकुमाराणं जलकते, जलप्पभ, जल, जलरूय, जलकंत, जलप्पम / दिसाकुमाराणं अमियगति, अमियवाहण, तुरियगति, खिप्पगति, सीहगति, सीहविक्कमगति / वाउकुमाराणं वेलब, पभंजण, काल महाकाला अंजण रिट्ठा / यणियकुमाराणं घोस, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org