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________________ 378 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [6-3] जम्बुद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत से दक्षिण दिशा में जो कार्य समुत्पन्न होते हैं, वे इस प्रकार हैं—अतिवर्षा, मन्दवर्षा, सुष्टि, दुर्वृष्टि, उदकोझेद (पर्वत आदि से निकलने वाला झरना), उदकोत्पील (सरोवर आदि में जमा हुई जलराशि), उदवाह (पानी का अल्प प्रवाह), प्रवाह, ग्रामवाह (ग्राम का बह जाना) यावत् सनिवेशवाह, प्राणक्षय यावत् इसी प्रकार के दूसरे सभी कार्य वरुणमहाराज से अथवा वरुणकायिक देवों से अज्ञात प्रादि नहीं हैं। [4] सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारणो जाव प्रहावच्चाभिण्णाया होत्या, तं जहा कक्कोडए कद्दमए अंजणे संखवालए पुडे पलासे मोएज्जए दहिमुहे अयंपुले कारिए / [6-4] देवेन्द्र देवराज शक्र के (तृतीय) लोकपाल-~-वरुण महाराज के ये देव अपत्यरूप से अभिमत हैं / यथा-कर्कोटक (कर्कोटक नामक पर्वत निवासी नागराज), कर्दमक (अग्निकोण में विद्युत्प्रभ नामक पर्वतवासी नागराज), अंजन (वेलम्ब नामक वायुकुमारेन्द्र का लोकपाल), शंखपाल (धरणेन्द्र नामक नागराज का लोकपाल), पुण्ड, पलाश, मोद, जय, दधि-मुख अयंपुल और कातरिक / [5] सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो देसूणाई दो पलिप्रोवमाई ठिती पण्णत्ता। अहावच्चाभिण्णायाणं देवाणं एग पलिप्रोवमं ठिती पण्णत्ता। एम हिड्ढोए जाव वरुणे महाराया। [6-5] देवेन्द्र देवराज शक के तृतीय लोकपाल वरुण महाराज की स्थिति देशोन दो पल्योपम की कही गई है और वरुण महाराज के अपत्यरूप से अभिमत देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। वरुण महाराज ऐसी महाऋद्धि यावत् महाप्रभाव वाला है। विवेचन-वरुण लोकपाल के विमान-स्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन-प्रस्तुत छठे सूत्र में बरुणलोकपाल के विमान के स्थान, उसके परिमाण, राजधानी, प्रासादावतंसक, वरुण के प्राज्ञानुवर्ती देव अपत्यरूप से अभिमत देव, उसके द्वारा ज्ञात आदि कार्यकलाप एवं उसकी स्थिति आदि का वर्णन किया गया है। वैश्रमरण लोकपाल के विमानस्थान आदि से सम्बन्धित वर्णन 7. [1] कहि णं भंते ! सक्कस्स देविदस्स देवरणो वेसमणस्स महारण्णो वागणाम महाविमाणे पण्णते। गोयमा ! तस्स पं सोहम्मडिसयस महाविमाणस्स उत्तरेणं जहा सोमस्स विमाण-रायहाणिबत्तवया तहा नेयम्वा जाव पासायडिसया / [7-1 प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र के (चतुर्थ) लोकपाल-वैश्रमण महाराज का वल्गु नामक महाविमान कहां है ? {7-1 उ.] गौतम ! वैश्रमण महाराज का विमान, मौधर्मावतंसक नामक महाविमान के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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