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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-७] [ 375 [3] जंबुद्दोवे 2 मंदरस्स पन्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाइं समुपज्जति, तं जहा-डिबा ति वा, डमरा ति वा, कलहा ति वा, बोला ति वा, खारा ति वा, महाजुद्धा ति वा, महासंगामा ति वा, महासत्थनिवडणाति वा, एवं महापुरिसनिवडणा तिवा, महारुधिरनिवडणा इवा, दुभूया ति वा, कुलरोगा ति वा, गामरोगा ति वा, मंडलरोगा ति वा, नगररोगा ति बा, सोसवेयणा इवा, अच्छिवेयणा इ वा, कण्ण-नह-दंतवेयणा इ वा, इंदग्गहा इ वा, खंदगाहा इ वा, कुमारग्गहा०, जक्खग०, भयग्ग०, एगाहिया ति बा, बेहिया ति वा, तेहिया ति वा, चाउत्थया ति वा, उब्वेयगा ति वा, कासा०, खासा इ वा, सासा ति वा, सोसा ति वा, जरा इ वा, दाहा० कच्छकोहा ति वा, अजीरया, पंडुरोया, परिसा इ वा, भगंदला इ वा, हितयसूला ति वा मत्थयसू०, जोणिसू०, पाससू०, कुच्छिसू०, गाममारीति वा, नगर०, खेड०, कब्बड०, दोणमुह०, मडंब०, पट्टण 0, प्रासम०, संवाहक सन्निवेसमारोति वा, पाणक्खया, धणावया, जणक्खया, कुलक्खया, बसणब्भया प्रणारिया जे यावन्ने तहप्पगारा न ते सक्कस्स देविदस्त देवरण्णो जमस्स महारपणो अण्णाया० 5, तेसि वा जमकाइयाणं देवाणं / [5-3] जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मेरुपर्वत से दक्षिण में जो ये कार्य समुत्पन्न होते हैं / यथाडिम्ब (विघ्न), डमर (राज्य में राजकुमारादि द्वारा कृत उपद्रव), कलह (जोर से चिल्ला-चिल्लाकर झगड़ा करना), बोल (अव्यक्त अक्षरों की ध्वनियाँ), खार (परस्पर मत्सर), महायुद्ध, (अव्यवस्थित महारण), महासंग्राम (चक्रव्यूहादि से युक्त व्यवस्थित युद्ध), महाशस्त्रनिपात अथवा इसी प्रकार महापुरुषों की मृत्यु, महारक्तपात, दुर्भूत (मनुष्यों और अनाज आदि को हानि पहुँचाने वाले दुष्ट जीव), कूलरोग (वंश-परम्परागत पैतक रोग), ग्राम-रोग, मण्डलरोग (एक मण्डल में फैलने वाली बीमारी) नगररोग, शिरोवेदना (सिरदर्द), नेत्रपीडा, कान, नख और दांत की पीड़ा, इन्द्रग्रह स्कन्दग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह, एकान्त र ज्वर (एकाहिक), द्वि-अन्तर (दूसरे दिन आने वाला बुखार) तिजारा (तीसरे दिन आने वाला ज्वर), चौथिया (चौथे दिन पाने वाला ज्वर), उद्वेजक (इष्ट वियोगादि जन्य उद्वेग दिलाने वाले काण्ड, अथवा लोकोद्वेगकारी चोरी आदि काण्ड), कास (खांसी), श्वास, दमा, बलनाशक ज्वर, (शोष), जरा (बुढ़ापा), दाहज्वर, कच्छ-कोह (शरीर के कक्षादि भागों में सड़ांध), अजीर्ण, पाण्डुरोग (पीलिया), अर्श रोग (मस्सा-बवासीर), भगंदर, हृदयशूल (हृदय-गति-अवरोधक पीड़ा), मस्तकपीड़ा, योनिशूल, पावशूल (कांख या बगल की पोड़ा), कुक्षि (उदर) शूल, ग्राममारी, नगरभारी, खेट, कबंट, द्रोणमुख, मडम्ब, पट्टण, आश्रम, सम्बाध और सन्निवेश, इन सबको मारी (मृगीरोग-महामारी), प्राणक्षय, धनक्षय, जनक्षय, कुलक्षय, व्यसनभूत (विपत्तिरूप) अनार्य (पापरूप), ये और इसी प्रकार के दूसरे सब कार्य देवेन्द्र देवराज शक के लोकपाल-यस महाराज से अथवा उसके यमकायिक देवों से अज्ञात (अनुमान से अज्ञात), अदृष्ट, अश्रुत, अविस्मृत, (या अचिन्त्य) और अविज्ञात (अवधि आदि की अपेक्षा) नहीं हैं। [4] सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो जमस्स महारण्णो इमे देवा अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तं जहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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