________________ | व्याख्याज्ञप्तिसूत्र नगरी में रहा हुआ मैं राजगृहनगर की विकुर्वणा करके वाराणसी के रूपों को जानता-देखता हूँ।' इस प्रकार उसका दर्शन अविपरीत (सम्यक) होता है / हे गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है (कि वह तथाभाव से जानता-देखता है।) 8. बीनो वि आलावगो एवं चेव, नवरं वाणारसीए नगरीए समोहणावेयवो, रायगिहे नगरे रूवाई जाणइ पासइ। [8] दूसरा आलापक भी इसी तरह कहना चाहिए। किन्तु विशेष यह है कि विकुर्वणा वाराणसी नगरी की समझनी चाहिए, और राजगृह नगर में रहकर रूपों को जानता-देखता है, (ऐसा जानना चाहिए।) 6. अणगारे णं भते ! भावियप्पा अमायी सम्मट्टिी वीरियलद्धीए वेउवियलद्धीए प्रोहिणाणलद्धीए रायगिहं नगरं वाणासि च नर्गार अंतरा य एगं महं जणवयवग्गं समोहए, 2 रायगिह नगरं वाणारसि च नर तं च अंतरा एग मह जणवयवांगं जाणइ पास? हंता, जाणइ पासइ / |9 प्र.] भगवन् ! अमायो सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि और अवधिज्ञानल ब्धि से, राजगृहनगर और वाराणसी नगरी के बीच में एक बड़े जनपदवर्ग को जानता-देखता है ? [9 उ.] हाँ (गौतम! वह उस जनपदवर्ग को) जानता-देखता है / 10. [1] से भंते ! कि तहामावं जाणइ पासइ ? अन्नहाभावं जाणइ पासइ ? गोयमा ! तहाभावं जाणइ पासइ, गो अन्नहाभावं जाणइ पासइ / [10-1 प्र.] भगवन् ! क्या वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता-देखता है ? [10-1 उ.] गौतम ! वह उस जनपदवर्ग को तथाभाव से जानता और देखता है, परन्तु अन्यथा भाव से जानता-देखता। [2] से केपट्ठणं० ? गोयमा ! तस्स णं एवं भवति-नो खलु एस रायगिहे णगरे, णो खलु एस वाणारसी नगरी, नो खलु एस अंतरा एगे जणवयवग्गे, एस खलु ममं वीरियलद्धी वेउब्वियलद्धी प्रोहिणाणलद्धी इड्ढी जुती जसे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे लद्ध पत्ते अभिसमन्नागए, से से दसणे अविवच्चासे भवति, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चति-तहाभाव जागति पासति, नो अन्नहाभा जाणति पासति / [10.2 प्र.] भगवन् ! इसका क्या कारण है ? [10-2 उ.] गौतम ! उस अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार के मन में ऐसा विचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org