________________ तृतीय शतक : उद्देशक-६ [ 365 तथाकथित मिथ्यादृष्टि अनगार विकुर्वणा करता है / वीर्यलब्धि से शक्तिस्फुरण करता है, वैक्रिय. लब्धि से वैक्रिय समुद्घात करके विविध रूपों की विकुर्वणा करता है और विभंगज्ञानल ब्धि से राजगुहादिक पशु, पुरुष, प्रासाद आदि विविध रूपों को जानता-देखता है। मिथ्यादृष्टि होने के कारण इसका दर्शन और ज्ञान मिथ्या होता है। कठिन शब्दों की व्याख्या समोहए =विकूर्वणा की / विवच्चासे = विपरीत / जणवयवगं = जनपद = देश का समूह / तहाभावं-जिस प्रकार वस्तु है, उसकी उसी रूप में ज्ञान में अभिसन्धि-- प्रतीति होना तथाभाव है; अथवा जैसा संवेदन प्रतीत होता है, वैसे ही भाव (बाह्य अनुभव) वाला ज्ञान तथाभाव है / ' अमायी सम्यग्दृष्टि अनगार द्वारा दिकुर्वणा और उसका दर्शन-- 6. प्रणगारे णं भते ! भावियध्या श्रमायी सम्मट्ठिी वीरियलद्धीए घेउब्वियलडीए प्रोहिनाणलद्धोए रायगिहे नगरे समोहए, 2 वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणइ पासइ ? हंता, जाणति पासति। [6 प्र.] भगवन् ! वाराणसी नगरी में रहा हुअा अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, अपनी वीर्यलब्धि से, वैक्रियल ब्धि से और अवधिज्ञानल ब्धि से राजगृह नगर की विकुर्वणा करके (तद्गत) रूपों को जानता-देखता है ? [6] हाँ (गौतम ! वह उन रूपों को) जानता-देखता है। 7. [1] से भते ! कि तहाभावं जाणइ पासइ ? अन्नहाभाव जाणति पासति ? गोयमा ! तहाभावं जाणति पासति. नो अन्नहाभावं जाणति पासति / [7-1 प्र] भगवन् ! वह उन रूपों को तथाभाव से जानता-देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता-देखता है। [7-13.] गौतम ! वह उन रूपों को तथाभाव से जानता-देखता है, किन्तु अन्यथाभाव से नहीं जानता-देखता। [2] से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! तस्स णं एवं भवति--एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहणित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणामि पासामि, से से दसणे अविवच्चासे भवति, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चति / [7-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वह तथाभाव से उन रूपों को जानता-देखता है, अन्यथाभाव से नहीं। [7-2 उ } गौतम ! उस अनगार के मन में इस प्रकार का विचार होता है कि वाराणसी 1. भगवतीसूत्र अभय. वृत्ति, पत्रांक 193 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org