________________ 354 ] | व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] एवं परिवाडीए नेयम्बं जाव संदमाणिया। [3-2] इस प्रकार परिपाटी से (क्रमश:) यावत् स्यन्दमानिका-सम्बन्धी रूपविकुर्वणा करने तक कहना चाहिए। 4. से जहानामए केइ पुरिसे प्रसिचम्मपायं गहाय गच्छेज्जा एवामेव प्रणगारे णं भावियप्पा असिचम्मपायहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उप्पइज्जा ? हंता, उप्पइज्जा / [4 प्र] (हे भगवन् ! ) जैसे कोई पुरुष (किसी कार्यवश) तलवार और चर्मपात्र (ढाल अथवा म्यान) (हाथ में) ले कर जाता है, क्या उसी प्रकार कोई भावितात्मा अनगार भी तलवार और ढाल (अथ वा म्यान) हाथ में लिये हर किसी कार्यवश (संघ आदि के प्रयोजन से) स्वयं प्राकाश में ऊपर उड़ सकता है ? [4 उ.] हाँ, (गौतम ! ) वह ऊपर उड़ सकता है / 5. अणगारे ण मते ! भावियप्पा केवतियाई पभू असिचम्मपायहत्यकिच्चगयाई रूवाई विउवित्तए ? गोयमा ! से जहानामए जुक्तो जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा तं चेव जाव विउब्बिसु वा 3 / [5 प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार (संघादि) कार्यवश तलवार एवं ढाल हाथ में लिये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? [5 उ.] गौतम ! जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती के हाथ को (दृढ़तापूर्वक) पकड़ लेता है, यावत् (यहाँ सब पूर्ववत् कहना) (वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है ;) किन्तु कभी इतने वैक्रियकृत रूप बनाये नहीं, बनाता नहीं और बनायेगा भी नहीं / 6. से जहानामए केइ पुरिसे एगोपडागं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगोपडागहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्दवेहासं उच्यतेज्जा ? हंता, गोयमा ! उप्पतेज्जा। [6 प्र.] जैसे कोई पुरुष (हाथ में) एक (एक ओर ध्वजा वाली) पताका लेकर गमन करता है, इसी प्रकार क्या भावितात्मा अनगार भी (संघादि) कार्यवश हाथ में एक (एक ओर ध्वजा वाला) पताका लेकर स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? [6 उ.] हाँ, गौतम ! वह आकाश में उड़ सकता है / 7. [1] अणगारे गं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू एगोपडागहत्यकिच्चगयाइं रूवाई विकुवित्तए? एवं चेव जाव विकुविसु वा 3 // [7-1 प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार, [संघादि) कार्यवश हाथ में एक (एक तरफ ध्वजा वाली) पताका लेकर चलने वाले पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org