________________ पंचमो उद्देसओ : 'इत्थी' अहवा अरणगारविकुम्वरगा' पंचम उद्देशक : 'स्त्री' अथवा 'अनगार-विकुणा' 1. अणगारे णं भते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इस्थिरूवं का जाव संदमाणियरूवं वा विकुन्वित्तए ? णो इण8 सम?। [१प्र.] भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना एक बड़े स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? [1 उ.] हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / (अर्थात्-वह ऐसा नहीं कर सकता।) 2. अणगारे णं भाते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इस्थिरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विकुवित्तए ? हंता, पभू। [2 प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके क्या एक बड़े स्त्रीरूप की यावत् स्यन्दमानिका (डोली) रूप को विकुर्वणा कर सकता है ? [2 उ.] हाँ, गौतम ! (बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके) वह वैसा कर सकता है। 3. [1] प्रणगारे णं भते ! भावियप्पा केवतियाई पनू इस्थिरूवाइं विकुवित्तए ? गोयमा ! से जहानामए जुबई जुवाणे हत्येणं हत्थंसि गेण्हेज्जा, चक्करस या नाभी प्ररगाउत्ता सिया एवामेव अणगारे वि भावियप्पा वेउब्वियसमग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा ! प्रणगारे गं भावियप्पा केवलकप्पं जंबुद्दोवं दीवं बहहिं इत्थीरूवेहि प्राइण्णं वितिकिणं जाव एस णं गोयमा ! अणगारस्स भावियप्पणो अयमेयारूवे विसए विसयमेत्ते बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विकुर्दिवसु वा 3 / [3-1 प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार, कितने स्त्रीरूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ है.? [3-1 उ.] हे गौतम! जैसे कोई युवक, अपने हाथ से युवती के हाथ को (भय या काम की विह्वलता के समय दृढ़तापूर्वक) पकड़ लेता है, अथवा जैसे चक्र (पहिये) की धुरी (नाभि) प्रारों से व्याप्त होती है, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी वैक्रिय समुद्घात से समवहत होकर सम्पूर्ण जम्बूद्वीप नामक द्वीप को, बहुत-से स्त्रीरूपों से आकीर्ण (व्याप्त), व्यतिकीर्ण (विशेष रूप से परिपूर्ण) यावत् कर सकता है; (अर्थात्-ठसाठस भर सकता है।) हे गौतम ! भावितात्मा अनगार का यह विषय है, विषयमात्र कहा गया है। उसने इतनी वैक्रिय शक्ति सम्प्राप्त होने पर भी कभी इतनी विक्रिया की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org