________________ तृतीय शतक : उद्देशक-५ ] [ 355 [7-1 उ.] गौतम ! यहाँ सब पहले की तरह कहना चाहिए, (अर्थात्-वह ऐसे वैक्रियकृत रूपों से समग्र जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है) परन्तु कदापि इतने रूपों को विकुर्वणा की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। [2] एवं दुहओपडागं पि। [7-2] इसी तरह दोनों ओर पताका लिये हुए पुरुष के जैसे रूपों की विकुर्वणा के सम्बन्ध में कहना चाहिए। 8. से जहानामए केइ युरिसे एगोजण्णोवइतं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भा० एगप्रोजष्णोवइतकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं उच्यतेज्जा ? हंता, उच्यतेज्जा। [8 प्र.) भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करके चलता है, उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष की तरह स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ? [8 उ.] हाँ, गौतम ! उड़ सकता है। 6. [1] प्रणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवतियाई पभू एगतोजष्णोवतितकिच्चगयाइं स्वाई विकुवित्तए? तं चेव जाव विकुविसु वा 3 / [9.1 प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? 9-1 उ.] गौतम ! पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए। (अर्थात ऐसे बैक्रियकृत रूपों से वह सारे जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है।) परन्तु इतने रूपों को विकुर्वणा कभी की नहीं, करता नहीं और करेगा भी नहीं। [2] एवं दुहोजण्णोवइयं पि। [1-2] इसी तरह दोनों ओर यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष की तरह रूपों की विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए / 10. [1] से जहानामए केइ पुरिसे एमग्रोपल्हस्थियं का चिठेज्जा एवामेव अणगारे वि भावियच्या? तं चेव जाव विकुविसु वा 3 / [10-1 प्र] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष, एक तरफ पल्हथी (पालथी) मार कर बैठे, इसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी (पल्हथी मार कर बैठे हुए पुरुष के समान) रूप बना कर स्वयं आकाश में उड़ सकता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org