________________ 346 ] [ व्याख्याप्रप्तिसूत्र [2] से भते ! कि प्रायड्ढीए गच्छइ, परिड्ढीए गच्छइ ? गोयमा ! नो प्रातिड्ढोए गच्छति, परिड्ढीए गच्छद / [9-2 प्र.] भगवन् ! क्या बह बलाहक प्रात्मऋद्धि से गति करता है या परऋद्धि से गति करता है? [6-2 उ.] गौतम ! वह प्रात्मऋद्धि से गति नहीं करता, परऋद्धि से गति करता है / [3] एवं नो प्रायकम्मुणा, परकम्मुणा / नो आयपयोगेणं, परप्पयोगेणं / [9-3] उसी तरह वह प्रात्मकर्म (स्वक्रिया) से और प्रात्मप्रयोग से गति नहीं करता, किन्तु परकर्म से और परप्रयोग से गति करता है। [4] ऊसितोदयं वा गच्छद पतोदयं वा गच्छइ / [9-4] वह उच्छ्रितपताका अथवा पतित-पताका दोनों में से किसी एक के प्राकार रूप से गति करता है। 10. से भते कि बलाहए, इत्थी ? गोयमा ! बलाहए णं से, जो खलु सा इत्थी / एवं पुरिसे, प्रासे हत्थी / [10 प्र.] भगवन् ! उस समय क्या वह बलाहक स्त्री है ? [10 उ.] हे गौतम ! वह बलाहक (मेघ) है, वह स्त्री नहीं है / इसी तरह बलाहक पुरुष, अश्व या हाथी नहीं है; (किन्तु बलाहक है।) 11. [1] पभू णं भाते ! बलाहए एगं महं जाणरूवं परिणामेत्ता प्रणेगाई जोयणाई गमित्तए ? जहा इस्थिरूवं तहा भाणियव्वं / णवरं एगप्रोचक्कवालं पि, दुहनोचक्कवालं पि भाणियब्बं / [11-1 प्र.] भगवन् ! क्या वह बलाहक, एक बड़े यान (शकट-गाड़ी) के रूप में परिणत होकर अनेक योजन तक जा सकता है? [११-१।उ.] हे गौतम ! जैसे स्त्री के सम्बन्ध में कहा, उसी तरह यान के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए / परन्तु इतनी विशेषता है कि वह, यान के एक ओर चक्र (पहिया) वाला होकर भी चल सकता है और दोनों ओर चक्र वाला होकर भी चल सकता है। [2] जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सोया-संदमाणियाणं तहेव / [11-2 प्र. इसी तरह युग्य, गिल्ली, थिल्लि, शिविका और स्यन्दमानिका के रूपों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। विवेचन-बलाहक के रूप-परिणमन एवं गमन को प्ररूपणा--प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 8 से 11 तक) में आकाश में अनेक रूपों में दृश्यमान मेघों के रूपपरिणमन तथा गमन के सम्बन्ध में चर्चा की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org