________________ तृतीय शतक : उद्देशक-४] [ 345 [7-5 प्र.] भगवन् ! क्या वायुकाय एक दिशा में एक पताका के समान रूप बना कर गति करता है अथवा दो दिशाओं में (एक साथ) दो पताकाओं के समान रूप बना कर गति करता है ? [7-5 उ.] गौतम ! वह (वायुकाय), एक पताका समान रूप बना कर गति करता है, किन्तु दो दिशाओं में (एक साथ) दो पताकारों के समान रूप बना कर गति नहीं करता। [6] से भंते ! कि वाउकाए, पडागा ? गोयमा ! वाउकाए णं से, नो खलु सा पडागा। 17-6 प्र.] भगवन् ! उस समय क्या वह वायुकाय, पताका है ? [7-6 उ.] गौतम ! वह वायुकाय है, किन्तु पताका नहीं है। विवेचन-वायुकाय द्वारा वैक्रियकृत रूप परिणमन एवं गमन सम्बन्धी प्ररूपणा प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 6-7) में विविध प्रश्नों द्वारा वायुकाय के वैक्रियकृत रूप तथा उस रूप में गमन करने के सम्बन्ध में निश्चय किया गया है / निष्कर्ष-वायुकाय, एक दिशा में, उच्छितपताका या पतितपताका इन दोनों में से एक बडी पताका की प्राकृति-सा रूप बैंक्रिय-शक्ति से बना कर प्रात्मऋद्धि से. प्रात्मकर्म से तथा प्रात्मप्रयोग से अनेक योजन तक गति करता है। वह वास्तव में वायूकाय होता है, पताका नहीं। कठिन शब्दों की व्याख्या---प्रायडढीए अपनी ऋद्धि-लब्धि-शक्ति से। प्रायकम्मणाअपने कर्म या अपनी क्रिया से / ऊसियोदयं = ऊँची ध्वजा के प्राकार की-सी गति / पततोदयं नीचे गिरी (पड़ी) हुई ध्वजा के आकार की-सी गति / एगो पडाग=एक दिशा में एक पताका के समान / दुहम्रो पडागं = दो दिशाओं में (एकसाथ) दो पताकाओं के समान / 2 बलाहक के रूप-परिगमन एवं गमन की प्ररूपरणा--- 4. पभू णं मते ! बलाहगे एग महं इस्थिरूवं घा जाव संदमाणियरूवं वा परिणामेत्तए ? हंता, पभू। [8 प्र.] भगवन् ! क्या बलाहक (मेघ) एक बड़ा स्त्रीरूप यावत् स्यन्दमानिका (म्याने) रूप में परिणत होने में समर्थ है ? [उ:] हाँ गौतम ! (बलाहक ऐसा होने में) समर्थ है / 6. [1] पमू णं माते ! बलाहए एगं महं इत्थिरूवं परिणामेत्ता प्रणेगाई जोयणाई गमित्तए ? हंता, पभू। [9.1 प्र.] भगवन् ! क्या बलाहक एक बड़े स्त्रीरूप में परिणत हो कर अनेक योजन तक जाने में समर्थ है ? [6-1 उ.] हाँ, गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ है / 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ टिप्पणयुक्त) भाग 1, पृ. 159-160 2. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 187 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org