________________ 344 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [6 प्र.] भगवन् ! क्या बायुकाय एक बड़ा स्त्रीरूप या पुरुषरूप, हस्तिरूप अथवा यानरूप, तथा युग्य (रिक्शागाड़ी, अथवा तांगा जैसो सवारी), गिल्ली (हाथी को अम्बाड़ी), थिल्ली (घोड़े का पलान), शिविका (डोली), स्यन्दमानिका (म्याना), इन सबके रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? J6 उ.] गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है। (अर्थात्-वायुकाय उपयुक्त रूपों को विकुर्वणा नहीं कर सकता), किन्तु वायुकाय यदि विकुर्वणा करे तो एक बड़ी पताका के आकार के रूप को विकुर्वणा कर सकता है / 7. [1] पभू णं भंते ! वाउकाए एग महं पड़ागासंठिय रूवं विउवित्ता प्रणेगाइं जोयणाई गमित्तए? हंता, पभू। [7-1 प्र.] भगवन् ! क्या वायुकाय एक बड़ी पताका के आकार (संस्थान) जैसे रूप को विकूर्वणा करके अनेक योजन तक गमन करने में समर्थ है ? [7-1 उ.] हाँ (गौतम ! बायुकाय ऐमा करने में) समर्थ है / [2] से भंते ! कि प्रायड्डीए गच्छइ, परिड्डीए गच्छइ ? गोयमा ! प्रातड्डीए गच्छइ, णो परिदीए गच्छइ / [7-2 प्र.! भगवन् ! क्या वह (वायुकाय) अपनी ही ऋद्धि से गति करता है अथवा पर की ऋद्धि से गति करता है ? [7-2 उ.] गौतम ! वह अपनी ऋद्धि से गति करता है, पर की ऋद्धि से गति नहीं करता। [3] जहा प्रायड्ढोए एवं चेव प्रायकम्मणा वि, प्रायप्पनोगेण वि भाणियव्वं / [7-3] जैसे वायुकाय आत्मऋद्धि से गति करता है, वैसे वह प्रात्मकर्म से एवं प्रात्मप्रयोग से भी गति करता है, यह कहना चाहिए / [4] से भंते ! कि ऊसिप्रोदयं गच्छद, पतोदयं गच्छइ ? गोयमा ! ऊसियोदय पि गच्छह, पतोदयं पि गच्छई। [7-4 प्र.] भगवन् ! क्या वह वायुकाय उच्छ्रितपताका (ऊंची-उठी हुई ध्वजा) के प्राकार से गति करता है, या पतित-(पड़ी हुई) पताका के आकार से गति करता है ? [7-4 उ. मौतम ! वह उच्छितपताका और पतित-पताका, इन दोनों के आकार से गति करता है। [5] से भंते ! कि एगोपडागं गच्छइ, दुहनोपडागं गच्छइ ? गोयमा ! एगोपडागं गच्छइ, नो दुहनोपडागं गच्छइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org