________________ तृतीय शतक : उद्देशक-४ ] [ 343 साथ बीज को देखता है ? इत्यादि प्रश्न हैं। सभी के उत्तर में दो-दो पदार्थों के संयोगी चार-चार भंग का संयोजन कर लेना चाहिए।' मूल प्रादि दस पदों के द्विकसंयोगी 45 भंग-मूल आदि 10 पद इस प्रकार हैं--मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल), शाखा, प्रवाल (अकुर), पत्र, पुष्प, फल और बीज / इन दस ही पदों के द्विकसंयोगी 45 भंग इस प्रकार होते हैं-मूल के साथ शेष 6 का संयोजन करने से 9 भंग, फिर कन्द के साथ शेष (आगे के) 8 का संयोजन करने से 8 भंग, फिर स्कन्ध के साथ आगे के त्वचा ग्रादि 7 का संयोग करने से 7 भंग, त्वचा के साथ शाखादि 6 का संयोग करने से 6 भंग, शाखा के साथ प्रवाल आदि 5 का संयोग करने से 5 भंग, प्रवाल के साथ पूष्पादि 4 का संयोग करने से 4 भंग, पत्र के साथ पुष्पादि तीन के संयोग से 3 भंग, पुष्प के साथ फलादि दो के संयोग से दो भंग और फल एवं बीज के संयोग से 1 भंग; यों कुल 45 भंग हुए। इन 45 ही भंगों का उत्तर चौभंगी के रूप में दिया गया है। भावितात्मा अनगार-संयम और तप से जिसकी आत्मा भावित (वासित) है, प्रायः ऐसे अनगारको अवधिज्ञान आदि लब्धियाँ प्राप्त होती हैं। 'जाणइ-पासई का रहस्य--यहाँ प्रत्येक सूत्रपाठ के प्रश्न में दोनों क्रियाओं—(जानता है, देखता है) का प्रयोग किया गया है, जबकि उत्तर में 'पासई' (देखता है) क्रिया का ही प्रयोग है, इसका रहस्य यह है, कि पासइ पद का अर्थ यहाँ सामान्य निराकार ज्ञान (दर्शन) से है, और जाणइ का अर्थ-विशेष साकार ज्ञान से है। सामान्यत. 'जानना' दोनों में उपयोग रूप से समान है अतः उत्तर में दोनों का 'पासइ' क्रिया से ग्रहण कर लेना चाहिए। चौभंगी क्यों ?क्षयोपशम की विचित्रता के कारण अवधिज्ञान विचित्र प्रकार का होता है। अत:----कोई अवधिज्ञानी सिर्फ विमान (यान) को और कोई सिर्फ देव को, कोई दोनों को और कोई दोनों को नहीं जानता-देखता / इसी कारण सर्वत्र चौभंगी द्वारा प्रस्तुत प्रश्नों का समाधान किया गया है। वायुकाय द्वारा वैक्रियकृत रूप-परिगमन एवं गमन सम्बन्धी प्ररूपरणा 6. पभू णं भंते ! वाउकाए एगं महं इस्थिरूवं वा पुरिसरूवं वा हस्थिरूवं वा जाणरूवं वा एवं जुग्गं:-गिल्लि-थिल्लि'-सीय-संदमाणियरूवं वा विउवित्तए ? गोयमा! णो इण? समढें / वाउकाए णं विकुब्वमाणे एगं महं पडागासंठियं रूवं विकुम्वइ / 1. (क) बियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण युक्त) भा. 1 पृ. 159 (ख) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 186 2. भगबतीमूत्र (टीकानुवादसहित) (पं. वेचरदासजी (खण्ड 2), पृ. 86 3. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 186 4. वर्तमान में सिंहल द्वीप (सिलोन-कोलम्बो) में 'गोल' (गोल्ल) नामक एक तालुका (तहसील है, जहाँ इस जुग्ग (यूग्य-रिक्सा गाडी) का ही विशेष प्रचलन है। -सं० 5. लाट देश प्रसिद्ध अश्व के पलान को अन्य प्रदेशों में 'थिल्लि' कहते हैं। --सं० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org