________________ 342 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 4. [1] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स कि अंतो पासइ, बाहि पासइ ? चउभंगो। [4-1 प्र. भगवन् ! भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के अान्तरिक भाग को (भी) देखता है अथवा (केवल) बाह्य भाग को देखता है ? [4 1 उ.] (हे गौतम !) यहाँ भी पूर्वोक्त प्रकार से चार भंग कहने चाहिए। [2] एवं कि मूलं पासइ, कंदं पा०? चउभंगो / मूलं पा० खंधं पा०? च उभंगो। [4-2 प्र.] इसी तरह पृच्छा की क्या वह (केवल) मूल को देखता है, (अथवा) कन्द को (भी) देखता है ? तथा क्या वह (केवल) मूल को देखता है, अथवा स्कन्ध को (भी) देखता है ? [4-2 उ.] हे गौतम ! (दोनों पृच्छाओं के उत्तर में) चार-चार भंग पूर्ववत् कहने चाहिए। [3] एवं मूलेणं बीज संजोएयन्वं / एवं कदेण वि समं संजोएयन्वं जाव बीयं / एवं जाव पुष्फेण समं बीयं संजोएयव्वं / 4-3] इसी प्रकार भूल के साथ बीज का संयोजन करके (पूर्ववत् पृच्छा करके उत्तर के रूप में) चार भंग कहने चाहिए / तथा कन्द के साथ यावत् बीज तक (के संयोगी चतुभंग) का संयोजन कर लेना चाहिए / इसी तरह यावत् पुष्प के साथ बीज (के संयोगी-असंयोगी चतुभंग) का संयोजन कर लेना चाहिए / 5. अणगारे णं भंते ! भाविद्यप्पा रुक्खस्स कि फलं पा० बीयं पा०? चउभंगो। [5 प्र.] भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार वृक्ष के (केवल) फल को देखता है, अथवा बीज को (भी) देखता है ? [5 उ.] गौतम ! (यहाँ भी पूर्वोक्त प्रकार से) चार भंग कहने चाहिए। विवेचन—भावितात्मा अनगार की जानने-देखने की शक्ति का प्ररूपण—प्रस्तुत 5 सूत्रों (1 से 5 सू. तक) में भावितात्मा अनगार की देवादि तथा वृक्षादि विविध पदार्थों को जानने-देखने की शक्ति का चतुभंगी के रूप में निरूपण किया है / प्रश्नों का क्रम इस प्रकार है-(१) वैक्रियकृत एवं यानरूप से जाते हुए देव को देखता है ? (2) वैक्रियकृत एवं यानरूप से जातो हुए देवी को देखता है ? (3) वैक्रियकृत एवं यानरूप से जाते हुए देवीसहित देव को देखता है ? (4) वृक्ष के आन्तरिक भाग को देखता है या बाह्य को भी? (6) मूल को देखता है या कन्द को भी, (6) मूल को देखता है या स्कन्ध को भी? (7) इसी तरह क्रमशः मूल के साथ बीज तक का एवं पावन् कन्द के साथ बीज तक का तथा यावत् पुष्प के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org