________________ 324 ] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [41 प्र.] भगवन् ! यह वज्र, वज्राधिपति-इन्द्र, और असुरेन्द्र असुरराज चमर, इन सब का नीचे जाने का काल और ऊपर जाने का काल; इन दोनों कालों में से कौन-सा काल किससे अल्प, बहुत (अधिक), तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [41 उ.] गौतम ! शक्रन्द्र का ऊपर जाने का काल और चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल, ये दोनों तुल्य हैं और सबसे कम हैं / शकेन्द्र का नीचे जाने का काल और वन का ऊपर जाने का काल, ये दोनों काल तुल्य हैं और (पूर्वोक्त काल से) संख्येयगुणा अधिक है। (इसी तरह) चमरेन्द्र का ऊपर जाने का काल और वज का नीचे जाने का काल, ये दोनों काल तुल्य हैं और (पूर्वोक्त काल से) विशेषाधिक हैं। विवेचन---इन्द्रद्वय एवं वज्र की ऊर्वादिगति का क्षेत्र काल को दष्टि से प्रल्प-बहुत्व-प्रस्तुत 7 सूत्रों (सू. 35 से 41 तक) में से प्रथम तीन सूत्रों में इन्द्रादि के ऊपर और नीचे गमन के क्षेत्रविषयक अल्पत्व, बहुत्व, तुल्यत्व और विशेषाधिकत्व का, तथा इनसे आगे के तीन सूत्रों में इन्द्रादि के ऊपर-नीचे गमन के कालविषयक अल्पत्व, बहुत्व, तुल्यत्व और विशेषाधिकत्व का पृथक-पृथक एवं इन्द्रद्वय एवं वज्र इन तीनों के नीचे और ऊपर जाने के कालों में से एक काल से दूसरे के काल के विशेषाधिकत्व, अल्पत्व एवं बहुत्व का सूक्ष्मता से निरूपण किया गया है। संख्येय, तुल्य और विशेषाधिक का स्पष्टीकरण-वाकेन्द्र के नीचे जाने का और ऊपर जाने का क्षेत्र-काल विषयक स्पष्टीकरण इस प्रकार है-शकेन्द्र जितना नीचा क्षेत्र दो समय में जाता है, उतना ही ऊँचा क्षेत्र एक समय में जाता है / अर्थात्-नीचे के क्षेत्र की अपेक्षा ऊपर का क्षेत्र दुगना ही चूणिकार ने स्पष्ट किया है कि शकेन्द्र एक समय में नीचे एक योजन तिरछा डेढ योजन और ऊपर दो योजन जाता है। इसी प्रकार शकेन्द्र की ऊर्ध्वगति और चमरेन्द्र की अधोगति बराबर बतलाई गई है, उसका तात्पर्य यह है कि शकेन्द्र एक समय में दो योजन ऊपर जाता है तो चमरेन्द्र भी एक समय में दो योजन नीचे जाता है / किन्तु शकेन्द्र, चमरेन्द्र और वज्र के केवल ऊर्ध्वगति क्षेत्र-काल में तारतम्य है, वह प्रकार समझना चाहिए-शक्रन्द्र एक समय में जितना क्षेत्र ऊपर जाता है, उतना क्षेत्र ऊपर जाने में वज्र को दो समय और चमरेन्द्र को तीन समय लगता है। अर्थात्-शकेन्द्र का जितना ऊर्ध्वगमन क्षेत्र है, उसका त्रिभाग जितना ऊर्ध्वगमन क्षेत्र चमरेन्द्र का है। इसीलिए नियत ऊर्ध्वगमनक्षेत्र विभाग न्यून तीन गाऊ बतलाया गया है / वच की नीचे जाने में गति मन्द होती है, तिरछे जाने में शीघ्रतर और ऊपर जाने में शीघ्रतम होती है। इसलिए वज्र का अधोगमनक्षेत्र त्रिभागन्यून योजन, तिर्यग्गमन क्षेत्र विशेषाधिक दो भाग = त्रिभागसहित तीन गाऊ, और ऊर्ध्वगमनक्षेत्र विशेषाधिक दो भाग-तिर्यकक्षेत्रकथित विशेषाधिक दो भाग-से कुछ विशेषाधिक होता है। चमरेन्द्र एक समय में जितना नीचे जाता है, उतना ही नीचा जाने में इन्द्र को दो समय और वज्र को तीन समय लगते हैं। इस कथनानुसार शकेन्द्र के अधोगमन को अपेक्षा वज्र का अधोगमन त्रिभागन्यून है / शकेन्द्र का अधोगमन का समय और वज्र का ऊर्ध्वगमन का समय दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org