________________ तृतीय शतक : उद्देशक-२ ] [ 323 ___ गोयमा ! सम्वत्योवं खेत्तं चमरे असुरिद असुरराया उड्ढं उपयति एक्केणं समएणं, तिरिय संखेज्जे भागे गच्छइ, अहे संखेज्जे भागे गच्छइ / [36 प्र.] भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के ऊर्ध्वगमन-विषय, अधोगमन विषय और तिर्यगमन विषय में से कौन-सा विषय किन-किन से अल्प, बहुत (अधिक), तुल्य या विशेषाधिक है ? [36 उ.] गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर, एक समय में सबसे कम क्षेत्र ऊपर जाता है; तिरछा, उससे संख्येय भाग अधिक (क्षेत्र) और नीचे उससे भी संख्येय भाग अधिक जाता है / 37. वज्जं जहा सक्कस्स देविदस्स तहेव, नवरं विसेसाहियं कायव्वं / [37] वज्र-सम्बन्धी गमन का विषय (क्षेत्र), जैसे देवेन्द्र शक्र का कहा है, उसी तरह जानना चाहिए / परन्तु विशेषता यह है कि गति का विषय (क्षेत्र) विशेषाधिक कहना चाहिए। 38. सक्कस्स णं भंते ! विदस्स देवरणो प्रोवयणकालस्स य उपयणकालस्स य कतरे कतरेहितो अप्पे वा, बहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवे सक्कस्स देविदस्स दे वरणो उप्पयणकाले, प्रोवयणकाले संखेज्जगुणे। [38 प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र का नीचे जाने का (अवपतन-) काल और ऊपर जाने का (उत्पतन-काल, इन दोनों कालों में कौन-सा काल, किस काल से अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? [38 उ.] गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊपर जाने का काल सबसे थोड़ा है, और नीचे जाने का काल उससे संख्येयगुणा अधिक है / 36. चमरस्स वि जहा सक्कस्स, गवरं सम्वत्योवे प्रोवयणकाले, उप्पणकाले संखेज्जगुणे / [39] चमरेन्द्र का गमनविषयक कथन भी शकेन्द्र के समान ही जानना चाहिए; किन्तु इतनी विशेषता है कि चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल सबसे थोड़ा है, ऊपर जाने का काल उससे संख्येयगुणा अधिक है। 40. वज्जल्स पुच्छा। गोयमा ! सव्वस्थोवे उप्पयणकाले, प्रोवयणकाले विसेसाहिए / 640] वज्र (के गमन के विषय में) पृच्छा की (तो भगवान् ने कहा-) गौतम ! वच का ऊपर जाने का काल सबसे थोड़ा है, नीचे जाने का काल उससे विशेषाधिक है। 41. एयस्त णं भंते ! वज्जस्स, वज्जाहिवत्तिस्स, चमरस्स य असुरिंदस्स असुररण्णो ओवयणकालस्स य उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहितो अप्पे वा 4 ? गोयमा ! सक्कस्स य उप्पयणकाले चमरस्स य प्रोत्यणकाले, एते गं बिणि वि तुल्ला सम्वत्थोवा / सक्कस्स य प्रोक्यणकाले वज्जस्स य उप्पयणकाले, एस णं दोण्ह वि तुल्ले संखेज्ज गुणे। चमरस्स य उपयणकाले बज्जस्स य प्रोवयणकाले, एस णं दोण वि तुल्ले विसेसाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org