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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-२] [ 321 [2] से केणठेणं भंते ! जाव गिरिहत्तए ? गोयमा ! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुवामेव सिग्धगती भवित्ता ततो पच्छा मंदगती भवति, देवे णं महिड्डीए पुवि पि य पच्छा वि सीहे सोहगती वेव, तुरिते तुरितगतो चेव / से तेणठेणं जाव पभू गेण्हित्तए। [33-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से देव, पहले फेंके हुए पुद्गल को, उसका पीछा करके यावत् ग्रहण करने में समर्थ है ? [33-2 उ.] गौतम ! जब पुद्गल फेंका जाता है, तब पहले उसकी गति शीघ्र (तीव्र) होती है, पश्चात् उसकी गति मन्द हो जाती है, जबकि महद्धिक देव तो पहले भी और पीछे (बाद में) भी शीघ्र और शीघ्रगति वाला तथा त्वरित और त्वरितगति वाला होता है / अत: इसी कारण से देव, फंके हुए पुद्गल का पीछा करके यावत् उसे पकड़ सकता है। 34. जति णं भंते ! देवे महिडीए जाव अणुरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए / कम्हा णं भंते ! सक्केणं देविदेणं देवरण्णा चमरे असुरिदे असुरराया नो संचाइए साहत्थि गेण्हित्तए ? गोयमा ! असुरकुमाराण देवाणं अहेगतिविसए सोहे सोहे चेब, तुरिते तुरिते चेव / उद्धंगतिविसए अप्पे अप्पे चेब, मंदे मंदे चेव / वेमाणियाणं देवाणं उड्ढंगतिविसए सोहे सोहे चेव, तुरिते तुरिते चेव / अहेगतिविसए अप्पे अप्पे चेव, मंद मंदे चेव / जावतियं खेत्तं सक्के देविदे देवराया उड्ढे उम्पति एक्केणं समएणं तं बज्जे दोहिं, जं वउजे दोहि तं चमरे तोहिं, सव्वत्थोवे सक्कस्स देविदस्स देवरणो उड्डलोयकंङए, अहेलोयकंडए संखेज्जगुणे / जावतियं खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया अहे प्रोवति एक्केणं समएणं तं सक्के दोहि, जं सक्के दोहि तं वज्जे तोहिं, सब्यस्थोवे चमरस्स असुरिंदस्स असुररणो अहेलोयकंडए, उड्ढलोयकंडए संखेज्जगुणे। एवं खलु गोयमा! सक्केणं देविदेणं देवरण्णा चमरे प्रसुरिदे असुरराया नो संचाइए साहत्यि गेण्हित्तए। [३४-प्र.] भगवन् ! महद्धिक देव यावत् पीछा करके फेंके हुए पुद्गल को पकड़ने में समर्थ है, तो देवेन्द्र देवराज शक्र अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को क्यों नहीं पकड़ सका? [34 उ.] गौतम ! असुरकुमार देवों का नीचे गमन का विषय (शक्ति-सामर्थ्य) शोघ्रशीघ्र और त्वरित-त्वरित होता है, और ऊर्ध्वगमन विषय अल्प-अल्प तथा मन्द-मन्द होता है, जबकि वैमानिक देवों का ऊँचे जाने का विषय शीघ्र-शीघ्र तथा त्वरित-त्वरित होता है और नीचे जाने का विषय अल्प-अल्प तथा मन्द-मन्द होता है। एक समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, जितना क्षेत्र (जितनी दूर) ऊपर जा सकता है, उतना क्षेत्र-उतनी दूर ऊपर जाने में बज को दो समय लगते हैं और उतना ही क्षेत्र ऊपर जाने में चमरेन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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