________________ 320 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (6) शक्रन्द्र द्वारा भगवान् के समक्ष अपना अपराध निवेदन, क्षमायाचना एवं चमरेन्द्र को भगवदाश्रय के कारण प्राप्त अभयदान / शकेन्द्र द्वारा स्वगन्तव्य प्रस्थान !' शक्कन्द्र के विभिन्न विशेषणों की व्याख्या-मघवं (मघवा) = बड़े-बड़े मेघों को वश में रखने वाला / पासासणं (पाकशासन)=पाक नाम बलवान् शत्रु पर शासन (दमन) करने वाला / सयकडं (शतकृतु) =सौ कृत्यों-अभिग्रहरूप सौ प्रतिमाओं अथवा श्रावक की पंचमप्रतिमारूप सौ प्रतिमाओं (ऋतुओं) का कार्तिक सेठ के भव में धारण करने वाला / सहस्सक्खं (सहस्राक्ष) सौ नेत्रों वाला- इन्द्र के 500 मंत्री होते हैं, उनके 1000 नेत्र इन्द्र के कार्य में प्रयुक्त होते हैं, इस अपेक्षा से सहस्राक्ष कहते हैं / वज्जपाणि (वज्रपाणि) = इन्द्र के हाथ में वज्र नामक विशिष्ट शस्त्र होता है, इसलिए वज्रपाणि / पुरंदरं (पुरन्दर) = असुरादि के पुरों = नगरों का विदारक नाशक / ' कठिन शब्दों की व्याख्या-वीससाए = स्वाभाविक रूप से / आभोइए= उपयोग लगाकर देखा। दुरंतपंतलक्षणे = दुष्परिणाम बाले अमनोज्ञ लक्षणों वाला। हीणपुण्णचाउद्दसे हीनपुण्या- अपूर्णा (टूटती-रिक्ता) चतुर्दशी का जन्मा हुअा / अप्पुस्सुए = उत्सुकता-चिन्ता से रहित-लापरवाह / महाबोंदि-महान् शरीर को। अच्चासादेत्तए = अत्यन्त आशानता = श्रीविहीन करने के लिए / 'पायदद्दरगं करेइ'- भूमि पर पैर पछाड़ता है। उच्छोलेति = अगले भाग में लात मारता है अथवा उछलता है / पच्छोलेति= पिछले भाग में लात मारता है, या पछाड़ खाता है / रयुग्घाय करेमाणधूल को उछालता बरसाता हुा / बेहासं = आकाश को / वियड्ढमाणे = घुमाता हुग्रा / विउभावेमाणे = चमकाता हुआ। परामुसइ स्पर्श किया-उठाया। कत्ति वेगेणं = शीघ्रता सेझटपट, वेग से / केसाम्गे वो इत्था = केशों के आगे का भाग हवा से हिलने लगा। फैके हुए पुद्गल को पकड़ने की देवशक्ति और गमन सामर्थ्य में अन्तर 33. भंते ! ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वदति०, 2 एवं वदासि-देवे णं भंते ! महिड्डीए महज्जुतीए जाव महाणुभागे पुन्धामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं गिहित्तए? 33. [1] हता, पभू / [33.1 प्र.] 'हे भगवन् !' यों कह कर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को बन्दन - नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहा (पूछा) 'भगवन ! महाऋद्धिसम्पन्न, महाद्युतियुक्त यावत् महाप्रभावशाली देव क्या पहले पुद्गल को फेक कर, फिर उसके पीछे जा कर उसे पकड़ लेने में समर्थ है ? [33.1 उ.] हाँ, गौतम ! वह (ऐसा करने में) समर्थ है / 1. बियाहपण्णतिसुत्त (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) (पं० बेचरदाम जी) भा. 1, पृ. 146 से 150 2. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 174 3. वहीं, पत्रांक 174, 175 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org