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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-२] [307 16 उ. | गौतम ! यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है। अर्थात् सभी असुरकुमार देव ऊपर सौधर्मकल्प तक नहीं जा सकते; किन्तु महती ऋद्धिवाले असुरकुमार देव ही यावत् सौधर्मदेवलोक तक ऊपर जाते हैं। 17. एस वि य णं भाते ! चमरे असुरिद असुरकुमारराया उड्ढं उत्पतियपुत्वे जाव सोहम्मो कप्पो? हंता, गोयमा ! एस वि य णं चमरे प्रसुरिंदे असुरराया उड्ढं उत्पतियपुत्वे जाव सोहम्मो कप्पो / [17 प्र.] हे भगवन् ! क्या असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले कभी ऊपर-यावत् सौधर्मकल्प तक ऊर्ध्वगमन कर चुका है ? [17 उ.] हाँ, गौतम ! यह असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले ऊपर-यावत् सौधर्मकल्प तक ऊर्ध्वगमन कर चुका है / / विवेचन-असुरकुमार देवों के अधो-तिर्यक-ऊर्ध्वगमन-सामर्थ्य से सम्बन्धित प्ररूपणाप्रस्तुत 14 सूत्रों (सू. 5 से 18 तक) में असुरकुमारदेवों के गमन-सामर्थ्य-सम्बन्धी चर्चा निम्नोक्त क्रम से की गई है (1) क्या असुरकुमारदेवों का अधोगमनसामर्थ्य है ? यदि है तो वे नीचे कहाँ तक जा सकते हैं और किस कारण से जाते हैं ? (2) क्या असुरकुमार देवों का तिर्यग्गमन-सामर्थ्य है ? यदि है तो वे तिरछे कहाँ तक और किस कारण से जाते हैं ? (3) क्या असुरकुमार देव ऊर्ध्वगमन कर सकते हैं ? कर सकते हैं तो कहाँ तक कर सकते हैं तथा कहाँ तक करते हैं ? तथा वे किन कारणों से सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं ? क्या वहाँ वे वहाँ को अप्सरामों के साथ दिव्यभोगों का उपभोग कर सकते हैं ? कितना काल बीत जाने पर वे सौधर्मकल्प में गए हैं, जाते हैं, या जाएँगे ? तथा वे किसका पाश्रय लेकर सौधर्मकल्प तक जाते हैं ? क्या चमरेन्द्र पहले कभी सौधर्मकल्प में गया है ? 'असुर' शब्द पर भारतीय धर्मों की दृष्टि से चर्चा -असुर शब्द का प्रयोग वैदिक पुराणों में 'दानव' अर्थ में हुआ है। यहाँ भी उल्लिखित वर्णन पर से 'असर' शब्द इसी अर्थ को सूचित करता है। पौराणिक साहित्य में प्रसिद्ध 'सुराऽसुरसंग्राम' (देव-दानवयुद्ध) भगवती सूत्र में उल्लिखित असरकमारदेवों की चर्चा से मिलता जलता परिलक्षित होता है। यहां बताया गया है कि असरकुमारों और सौधर्मादि सुरों में परस्पर अहिनकुलवत जन्मजातवैर (भवप्रत्ययिक वैरानुबन्ध) होता है। इसो कारण वे ऊपर सौधर्मदेवलोक तक जाकर उपद्रव करते हैं, चोरी करते हैं और वहां की सुरप्रजा को त्रास देते हैं। 1. वियाहपण्णत्ति सुत्त (मूलपाठ टिप्पण) (पं. बेचरदासजी) भा. 1, पृ. 141 से 143 तक 2. श्रीमद्-भगवती सूत्र (टीकानुवादसहित) (पं. बेच राम जी) खण्ड 2, पृ. 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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