________________ 306]] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र _ [13-5] हे गौतम ! इस कारण से असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जाएँगे। 14. केवतिकालस्स णं भंते ! असुरकुमारा देवा उड्ढे उप्पयंति जाव सोहम्म कप्पं गया य, गमिस्सति य? गोयमा ! प्रणताहि प्रोसप्पिणोहि अणताहि उस्सप्पिणीहि समतिक्कताहि, अस्थि णं एस भावे लोयच्छरयभूए समुप्पज्जइ-जंणं असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो / [14 प्र.] भगवन् ! कितने काल में (कितना समय व्यतीत होने पर) असुरकुमार देव ऊर्ध्व-गमन करते हैं, तथा सौधर्मकल्प तक ऊपर गये हैं, जाते हैं और जाएंगे? |14 उ.] गौतम ! अनन्त उत्सपिणी-काल और अनन्त अवसर्पिणी काल व्यतीत होने के पश्चात् लोक में आश्चर्यभूत (आश्चर्यजनक) यह भाव समुत्पन्न होता है कि असुरकुमार देव ऊर्ध्वउत्पतन (गमन) करते हैं, यावत् सौधर्मकल्प तक जाते हैं / 15. किनिस्साए णं माते ! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ? से जहानामए इह सबरा इ वा बब्बरा इ वा टंकणा इ वा चुच्चुया इ वा पल्हया इ वा पुलिदा इ वा एगं महं रणं वा, गड्ड वा दुग्गं वा दरि वा विसमं वा पन्क्तं वा णीसाए सुमहल्लमवि पासबलं वाहत्यिबलं वा जोहबलं वा धणुबलं वा प्रागलेंति, एवामेव असुरकुमारा वि देवा, णऽनत्थ अरहते वा, अरहंतचेइयाणि वा, अणगारे वा भावियप्पणो निस्साए उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो। [15 प्र.] भगवन् ! किसका आश्रय (निश्राय) लेकर असुरकुमार देव ऊर्ध्व-गमन करते हैं, यावत् ऊपर सौधर्मकल्प तक जाते हैं ? / [15 उ.] हे गौतम ! जिस प्रकार यहाँ (इस मनुष्यलोक में) शबर, बर्बर, टंकण (जातीय म्लेच्छ) या चुर्चुक (अथवा भुत्तुय), प्रश्नक अथवा पुलिन्द जाति के लोग किसी बड़े अरण्य (जंगल) का, गड्ढे का, दुर्ग (किले) का, गुफा का, किसी विषम (ऊबड़-खाबड़ प्रदेश या बीहड़ या वृक्षों से ' सघन) स्थान का, अथवा पर्वत का आश्रय ले कर एक महान एवं व्यवस्थित अश्ववाहिनी को, गजवाहिनी को, पैदल (पदाति) सेना को, अथवा धनुर्धारियों की सेना को आकुल-व्याकुल कर देते (अर्थात्-साहसहीन करके जीत लेते) हैं; इसी प्रकार असुर कुमार देव भी एकमात्र अरिहन्तों का या अरिहन्तदेव के चैत्यों का, अथवा भावितात्मा अनगारों का प्राश्रय (निश्राय) ले कर ऊर्ध्वगमन करते (उड़ते) हैं, यावत सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं। 16. सव्वे विणं भते ! प्रसुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाब सोहम्मो कप्पो ? गोयमा ! णो इण? सम?, महिड्डिया णं असुरकुमारा देवा उड्ढे उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्यो। [16 प्र.] भगवन् क्या सभी असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक यावत् ऊर्ध्वगमन करते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org