________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 10. किंपत्तियं णं मते ! असुरकुमारा देवा नंदीसरवरदीवं गता य, गमिस्संति य? ___ गोयमा ! जे इमे अरिहंता भगवंता एतेति णं जम्मणमहेसु वा निक्खमणमहेसु वा जाणुष्पत्तिमहिमासु वा परिनिव्वाणमहिमासु वा एवं खलु असुरकुमारा देवा नंदीसरवरं दोवं गता य, गमिस्संति य / / [10 प्र. भगवन् ! असुरकुमार देव, नन्दीश्वरवरद्वीप किस प्रयोजन (निमित्त या कारण) से गए हैं, (जाते हैं) और जाएँगे ? [10 उ. हे गौतम ! जो ये अरिहन्त भगवान् (तीर्थकर) हैं, इनके जन्म-महोत्सव में, निष्क्रमण (दीक्षा) महोत्सव में, ज्ञानोत्पत्ति (केवलज्ञान उत्पन्न होने पर महिमा (उत्सव) करने, तथा परिनिर्वाण (मोक्षगमन) पर महिमा (महोत्सव) करने के लिए असुरकुमार देव, नन्दीश्वरवरद्वीप गए हैं, जाते हैं और जाएंगे। 11. अस्थि णं भाते ! असुरकुमाराणं देवाणं उड्ढं गतिविसए प० ? हंता, अस्थि। [11 प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों में (अपने स्थान से) ऊर्ध्व (ऊपर) गमनविषयक सामर्थ्य है ? [11 उ.] हाँ गौतम ! (उनमें अपने स्थान से ऊँचे जाने की शक्ति) है / 12. केवतियं च णं भते ! असुरकुमाराणं देवाणं उड्ढं गतिविसए ? गोयमा ! जाव अच्चुतो कप्पो / सोहम्मं पुण कप्पं गता य, गमिस्संति य / [12 प्र.] भगवन् ! असुरकुमारदेवों की ऊर्ध्वगमनविषयक शक्ति कितनी है ? [12 उ.] गौतम ! असुरकुमारदेव अपने स्थान से यावत् अच्युतकल्प (बारहवें देवलोक) तक ऊपर जाने में समर्थ हैं / (ऊर्ध्वगमन-विषयक उनकी यह शक्तिमात्र है, किन्तु वे वहाँ तक कभी गए नहीं, जाते नहीं और न जाएँगे।) अपितु वे सौधर्मकल्प (प्रथम देवलोक) तक गए हैं, (जाते हैं) और जाएंगे। 13. [1] किंपत्तियं णं भते ! असुर कुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गता य, गम्मिसंति य ? ___ गोयमा ! तेसि णं देवाणं भवपच्चइयवेराणुबंधे। ते णं देवा विकुब्वेमाणा परियारेमाणा वा प्रायरक्खे देवे वित्तासेंति / अहालहुस्सगाई रयणाई गहाय पायाए एगंतमंतं प्रवक्कमंति / [13-1 प्र.) भगवन् ! असुरकुमारदेव किस प्रयोजन (निमित्त == कारण) से सौधर्मकल्प तक गए हैं. (जाते हैं) और जाएँगे? [13-1 उ.] हे गौतम ! उन (असुरकुमार) देवों का वैमानिक देवों के साथ भवप्रत्ययिक (जन्मजात) वैरानुबन्ध होता है। इस कारण वे देव क्रोधवश वैक्रिय शक्ति द्वारा नानारूप बनाते Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org