________________ तृतीय शतक : उद्देशक 2] [5 प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों का (अपने स्थान से) अधोगमन-विषयक (सामर्थ्य) है? [5 उ.] हाँ, गौतम ! (उनमें अपने स्थान से नीचे जाने का सामर्थ्य) है / 6. केवतिए च णं भते ! पभ ते असुरकुमाराणं देवाणं अहेगतिबिसए पण्णते ? गोयमा ! जाव आहेसत्तमाए पुढवीए, तच्चं पुण पुढवि गता य गमिस्संति य / [6 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों का (अपने स्थान से) अधोगमन-विषयक सामर्थ्य कितना (कितने भाग तक) है ? [6 उ.] गौतम ! सप्तमपृथ्वी तक नीचे जाने की शक्ति उनमें है / (किन्तु वे वहाँ तक कभी गए नहीं, जाते नहीं और जाएँगे भी नहीं) वे तीसरी पृथ्वी (बालुकाप्रभा) तक गये हैं, जाते हैं और जायेंगे। 7. किंपत्तियं णं भते ! असुरकुमारा देवा तच्चं पुढधि गता य, पमिस्संति य? गोयमा ! पुत्ववेरियस्स वा वेदणउदीरणयाए, पुव्वसंगतियस्स वा वेदणउवसामणयाए / एवं खलु असुरकुमारा देवा तच्चं पुढवि गता य, गमिस्सति य / [7 प्र.] भगवन् ! किस प्रयोजन (निमित्त या कारण) से असुर कुमार देव तीसरी पृथ्वी तक गये हैं, (जाते हैं,) और भविष्य में जायेंगे ? [7 उ.] हे गौतम ! अपने पूर्व शत्रु को (असाता वेदन भड़काने)-दु:ख देने अथवा अपने पूर्व साथी (मित्रजन) की वेदना का उपशमन करके (दुःख-निवारण कर सुखी बनाने) के लिए असुरकुमार देव तृतीय पृथ्वी तक गये हैं, (जाते हैं,) और जायेंगे। 8. अस्थि णं भते ! असुरकुमाराणं देवाणं तिरियं गतिविसए पण्णते? हंता, अस्थि / [8 प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमारदेवों में तिर्यग् (तिरछे) गमन करने का (सामर्थ्य) कहा गया है ? [8 उ.] हाँ, गौतम ! (असुरकुमार देवों में अपने स्थान से तिर्यग्गमन-विषयक सामर्थ्य) है / 9 केवतियं च गंमते ! असुरकमाराणं देवाणं तिरियं गतिविसए पण्णत्ते ? गोयमा ! जाव असंखेज्जा दीव-समुद्दा, नंदिस्सरवरं पुण दीवं गता य, गमिस्संति य / [प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देवों में (अपने स्थान से) तिरछा जाने की कितनी (कहाँ तक) शक्ति है ? [6 उ.] गौतम ! असुरकुमार देवों में (अपने स्थान से), यावत् असंख्येय द्वीप-समुद्रों तक (तिरछा गमन करने का सिर्फ सामर्थ्य है ;) किन्तु वे नन्दीश्वर द्वीप तक गए हैं, (जाते हैं, और भविष्य में जायेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org