________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] |297 [60-1 उ.] हाँ, गौतम ! समुत्पन्न होते हैं। [2] से कहमिदाणि परेंति ? गोयमा ! ताहे चेव ग से सक्के देविदे देवराया ईसाणस्स देविदास देवरण्णो अंतियं पाउन्भवति, ईसाणे णं देविदे देवराया सक्कस्स देविदस्स दे वरण्णो अंतियं पाउन्भवइ-'इति भो ! सक्का! दविदा ! देवराया ! दाहिणड्डलोगाहिवतो !'; 'इति भो ! ईसाणा / देविदा ! देवराया ! उत्तरड्ढलोगाहिवतो!' / 'इति भो इति भो त्ति ते अन्नमन्नस्स किच्चाई करणिज्जाई पच्चणुभवमाणा विहरति / [60-2 प्र.] भगवन् ! जब इन दोनों के कोई कृत्य (प्रयोजन) या करणीय होते हैं, तब वे कैसे व्यवहार (कार्य) करते हैं ? [60-2 उ.] गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र को कार्य होता है, तब वह (स्वयं) देवेन्द्र देवराज ईशान के समीप प्रकट होता है, और जब देवेन्द्र देवराज ईशान को कार्य होता है, तब वह वयं देवेन्द्र देवराज शक्र के निकट जाता है। उनके परस्पर सम्बोधित करने का तरीका यह है.. 'ऐसा है, हे दक्षिणार्द्ध लोकाधिपति देवेन्द्र देवराज शक!' (शकेन्द्र पुकारता है -) 'ऐसा है, हे उत्तरार्द्ध लोकाधिपति देवेन्द्र देवराज ईशान ! (यहाँ), दोनों ओर से 'इति भो-इति भो !' (इस प्रकार के शब्दों से परस्पर) सम्बोधित करके वे एक दूसरे के कृत्यों (प्रयोजनों) और करणीयों (कार्यो) को अनुभव करते हुए विचरते हैं, (अर्थात्-दोनों अपना-अपना कार्यानुभव करते रहते हैं।) 61. [1] अस्थि णं भते! तेसि सक्कोसाणाणं देविदाणं देवराईणं विवादा समुप्पज्जंति ? हंता, अस्थि। [61-1 प्र.] भगवन् ! क्या देवेन्द्र शक्र और देवेन्द्र देवराज ईशान, इन दोनों में विवाद भी समुत्पन्न होता है ? [61-1 3.] 'हाँ, गौतम ! (इन दोनों इन्द्रों के बीच विवाद भी समुत्पन्न) होता है। [2] से कहमिदाणि पकरेंति ? गोयमा ! ताहे चेव णं ते सक्कोसाणा देविदं देवरायाणो सर्णकुमारं देविद देवरायं मणसीकरेंति / तए णं से सणंकुमारे दविंद देवराया तेहिं सक्कोसाहिं विहि देवराईहि मणसीकए समाणे खिप्पामेव सक्कीसाणाणं देविदागं देवराईणं अंतियं पादुन्भवति / जं से बदइ तस्स प्राणाउववाय-वयण-निद्दे से चिट्ठति / [61-2 प्र.] (भगवन् ! जब उन दोनों इन्द्रों में परस्पर विवाद उत्पन्न हो जाता है;) तब वे क्या करते हैं ? [61-2 उ.] गौतम ! जब शकेन्द्र और ईशानेन्द्र में परस्पर विवाद उत्पन्न हो जाता है, तब वे दोनों, देवेन्द्र देवराज सनत्कुमारेन्द्र का मन में स्मरण करते हैं। देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र द्वारा स्मरण करने पर शीघ्र ही सनत्कुमारेन्द्र देवराज, शकेन्द्र और ईशानेन्द्र के निकट प्रकट होता (आता) है। वह जो भी कहता है, (उसे ये दोनों इन्द्र मान्य करते हैं। ) ये दोनों इन्द्र उसकी प्राज्ञा, सेवा, आदेश और निर्देश में रहते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org