________________ [295 तृतीय शतक : उद्देशक-१] होता है, तथा एक भाग कुछ नीचा और निम्नतर होता है, इसी तरह शकेन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों के सम्बन्ध में समझना चाहिए / इसी कारण से पूर्वोक्त रूप से कहा जाता है। विवेचन-शक्केन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों की ऊँचाई-नीचाई में अन्तर–प्रस्तुत सूत्र में करतल के दृष्टान्त द्वारा शकेन्द्र से ईशानेन्द्र के विमानों को किञ्चित् उच्चतर तथा उन्नततर और ईशानेन्द्र से शकेन्द्र के विमानों को कुछ नीचा एवं निम्नतर प्रतिपादन किया गया है। उच्चता-नीचता या उन्नतता-निम्नता किस अपेक्षा से ?-उच्चता और उन्नतता के यहाँ दो अर्थ किये गये हैं--(१) प्रमाण की अपेक्षा से, अथवा प्रासाद की अपेक्षा से विमानों की उच्चता तथा (2) शोभाधिक आदि गुणों की अपेक्षा से अथवा प्रासाद के पीठ की अपेक्षा से उन्नतता समझना चाहिए / तथा इन दोनों के विपरीत नीचत्व और निम्नत्व समझ लेना चाहिए।' यों तो शास्त्रान्तर में दोनों इन्द्रों के विमानों की ऊंचाई 500 योजन कही है, वह सामान्यापेक्षा से समझना चाहिए / दोनों इन्द्रों का शिष्टाचार तथा विवाद में सनत्कुम्नारेन्द्र की मध्यस्थता 56. [1] पभू णं भंते ! सक्के देविदे देवराया ईसाणस्स देविदस्स देवरण्णो अंतियं पाउमवित्तए? हंता, पभू। [56-1 प्र.] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के पास प्रकट होने (जाने) में समर्थ हैं ? [56-1 उ.] हाँ गौतम ! शकेन्द्र, ईशानेन्द्र के पास जाने में समर्थ है / [2] से णं भते ! कि प्राढायमाणे पभू, अणाढायमाणे पभू ? गोयमा! आढायमाणे पमू, नो प्रणाढायमाणे पभू / [56-2 प्र.] भगवन् ! (जब शकेन्द्र, ईशानेन्द्र के पास जाता है तो) क्या वह आदर करता हुग्रा जाता है, या अनादर करता हुआ जाता है ? [56-2 उ ] हे गौतम ! वह उसका (ईशानेन्द्र का) अादर करता हुआ जाता है, किन्तु अनादर करता हुआ नहीं। 57. [1] पमू णं माते ! ईसाणे देविदे देवराया सक्कस्स देविवस देवरण्णो अंतियं पाउभवित्तए? हंता, पभू। 1. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 169 (ख) भगवती सूत्र, प्रमेयचन्द्रिका टीका (हिन्दीगुर्जर भाषानुवादसहित) भा. 3, पृ. 283-284 2. (क) जीवाभिगम सूत्र वृत्ति (स. पृ. 397) (ख) भगवती (टीकानुवाद) प्रथम खण्ड, पृ. 296; भगवती. अ. वृत्ति, पृ. 169 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org