________________ 294 / व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 54. ईसाणे णं भंते ! देविदे देवराया तानो देवलोगानो पाउपखएणं जाव कहिं गच्छहिति ? कहि उववज्जिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिभिहिति जाव अंतं काहिति / [54 प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान देव आयुष्य का क्षय होने पर, वहाँ का स्थितिकाल पूर्ण होने पर उस देवलोक से च्युत होकर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा? [54 उ.] गौतम ! वह (देवलोक से च्यव कर) महाविदेह वर्ष (क्षेत्र) में जन्म लेकर सिद्ध होगा यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेगा। विवेचन-ईशानेन्द्र की स्थिति और परम्परा से मुक्त हो जाने को प्ररूपणा-प्रस्तुत दो सूत्रों में से प्रथम में ईशानेन्द्र की स्थिति और दूसरे में स्थिति आयुष्य और भव पूर्ण होने पर भविष्य में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाने की प्ररूपणा है। बालतपस्वी को इन्द्रपद प्राप्ति के बाद भविष्य में मोक्ष कैसे ?--यद्यपि बालतपस्वी होने से तामली मिथ्यात्वी था, किन्तु इन्द्रपद प्राप्ति के बाद सम्यग्दृष्टि (सिद्धान्ततः) हो गया। इस कारण उसका मिथ्याज्ञान सम्यग्ज्ञान हो गया। इसलिए महाविदेह में जन्म लेकर भविष्य में सिद्ध-बुद्ध होने में कोई सन्देह नहीं। शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों की ऊँचाई-नीचाई में अन्तर--- 55. [1] सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो विमाहितो ईसाणस्स देविदस्स देवरपणो विमाणा ईसि उच्चयरा चेव ईसि उन्नयतरा चेव ? ईसाणस्स वा देविदस्स देवरण्णो विमाणेहितो सक्कस्स विदस्स देवरको विमाणा ईस नीययरा चेव ईसि निण्णयरा चेव ? हंता, गोतमा! सक्कस्स तं चेव सन्छ नेयव्वं / [55-1 प्र] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र के विमानों से देवेन्द्र देवराज ईशान के विमान कुछ (थोड़े-से) उच्चतर-ऊंचे हैं, कुछ उन्नततर हैं ? अथवा देवेन्द्र देवराज ईशान के विमानों से देवेन्द्र देवराज शक के विमान कुछ नीचे हैं, कुछ निम्नतर हैं ? [55-1 उ.] हाँ, गौतम ! यह इसी प्रकार है। यहाँ ऊपर का सारा सूत्रपाठ (उत्तर के रूप में) समझ लेना चाहिए / अर्थात्-देवेन्द्र देवराज शक के विमानों से देवेन्द्र देवराज ईशान के विमान कुछ ऊंचे हैं, कुछ उन्नततर हैं, अथवा देवेन्द्र देवराज ईशान के विमानों से देवेन्द्र देवराज शक्र के विमान कुछ नीचे हैं, कुछ निम्नतर हैं। [2] से केणठेणं? गोयमा ! से जहानामए करतले सिया देसे उच्चे देसे उन्नये, देसे णीए देसे निण्णे, से तेणठेणं० / [55-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? [55-2 उ.] गौतम ! जैसे किसी हथेली का एक भाग (देश) कुछ ऊंचा और उन्नततर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org