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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [ 291 ईशानेन्द्र) को बधाया / फिर वे इस प्रकार बोले- 'हे देवानुप्रिय ! बलिचंचा राजधानी निवासी बहुत से असुर कुमार देव और देवीगण आप देवानुप्रिय को कालधर्म प्राप्त हुए एवं ईशानकल्प में इन्द्र रूप में उत्पन्न हुए देखकर अत्यन्त कोपायमान हुए यावत् आपके मृतशरीर को उन्होंने मनचाहा पाड़ा-टेढ़ा खींच-घसीटकर एकान्त में डाल दिया / तत्पश्चात् वे जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस लौट गए।' 48. तए णं से ईसाणे देविद देवराया तेसि ईसाणकप्पवासीणं बहूणं बेमाणियाणं देवाण य देवोण य अंतिए एयम सोच्चा निसम्म प्रासुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तत्थेव सयणिज्जवरगए तिवलियं मिडि निडाले साहटु बलिचंचं रायहाणि अहे सक्खि सपडिदिसि समभिलोएइ, तए णं सा बलिचंचा रायहाणी ईसाणेणं देविदेणं देवरपणा अहे सक्खि सपडिदिसि समभिलोइया समाणी तेणं दिव्वप्पमावेणं इंगालब्भया मुम्मुरब्भया छारिन्भया तत्तकवेल्लकन्भूया तत्ता समजोइन्भूया जाया यावि होत्था। [40] उस समय देवेन्द्र देवराज ईशान ईशानकल्पवासी बहुत-से वैमानिक देवों और देवियों से यह बात सुनकर और मन में विचार कर शीघ्र ही क्रोध से पागबबूला हो उठा, यावत् क्रोधाग्नि से तिलमिलाता (मिसमिसाहट करता) हुआ, वहीं देवशय्या स्थित ईशानेन्द्र ने ललाट पर तीन सल (रेखाएँ) डालकर एवं भ्र कुटि तान कर बलिचंचा राजधानी को, नीचे ठीक सामने, (सपक्ष-चारों दिशाओं से बराबर सम्मुख, और सप्रतिदिक् (चारों विदिशात्रों से भी एकदम सम्मुख) होकर एकटक दृष्टि से देखा / इस प्रकार कुपित दृष्टि से बलिचंचा राजधानी को देखने से वह उस दिव्यप्रभाव से जलते हुए अंगारों के समान, अग्नि-कणों के समान, तपी हुई राख के समान, तपतपाती बाल जैसी या तपे हुए गर्म तवे सरीखी, और साक्षात् अग्नि की राशि जैसी हो गई~~जलने लगी। 46. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्यव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीप्रो य तं बलिचंचं रायहाणि इंगालम्भूयं जाव समजोतिब्भूयं पासंति, 2 भोया उत्तस्था सुसिया उचिग्गा संजायभया सव्वनो समंता प्राधावेंति परिधावति, 2 अन्नमन्नस्स कार्य समतुरंगेमाणा 2 चिट्ठति / [46] जब बलिचंचा राजधानी में रहने वाले बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों ने उस बलिचंचा राजधानी को अंगारों सरीखी यावत साक्षात अग्नि को लपटों जैसी देखी तो वे उसे देखकर अत्यन्त भयभीत हुए, भयत्रस्त होकर कांपने लगे, उनका आनन्दरस सूख गया (अथवा उनके चेहरे सूख गए), वे उद्विग्न हो गए, और भय के मारे चारों ओर इधर-उधर भाग-दौड़ करने लगे। (इस भगदड़ में) वे एक दूसरे के शरीर से चिपटने लगे अथवा एक दुसरे के शरीर को प्रोट में छिपने लगे। 50. तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थन्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवोत्रो य ईसाणं देविवं देवरायं परिकुवियं जाणित्ता ईसाणस्स देविदस्स देवरण्णो तं दिव्वं देविष्टि दिव्वं देवज्जुति दिन्छ देवाणुभागं दिव्वं तेयलेस्सं असहमाणा सव्वे सपक्खि सपडिदिसि ठिच्चा करयलपरिहियं दसनहं तिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु जएणं विजयेणं वदाविति, 2 एवं वयासी-अहो णं देवाणुप्पिएहि दिवा देविड्डी जाव अभिसमन्नागता, तं विट्ठा णं देवाणुप्पियाणं दिव्वा देविड्डी जाव लद्धा पत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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