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________________ 290 [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र बालतपस्वी का शव (मृतशरीर) (पड़ा) था वहाँ आए। उन्होंने (तामली बालतपस्वी के मृत शरीर के) बाएं पैर को रस्सी से बांधा, फिर तीन बार उसके मुख में थूका / तत्पश्चात् ताम्रलिप्ती नगरी के शृगाटकों-त्रिकोण मार्गों (तिराहों) में, चौकों में, प्रांगण में, चतुर्मुख मार्ग में तथा महामार्गों में; अर्थात् ताम्रलिप्ती नगरी के सभी प्रकार के मार्गों में उसके शव (मृतशरीर) को घसीटा; अथवा इधरउधर खींचतान की और जोर-जोर से चिल्लाकर उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहने लगे-- 'स्वयमेव तापस का वेष पहन (ग्रहण) कर 'प्राणामा' प्रवज्या अंगीकार करने वाला यह तामली बालतपस्वी हमारे सामने क्या है ? तथा ईशानकल्प में उत्पन्न हुमा देवेन्द्र देवराज ईशान भी हमारे सामने कौन होता है ?' यों कहकर वे उस तामली बालतपस्वी के मृत शरीर की हीलना, (अवहेलना), निन्दा करते हैं, उसे कोसते (खिसा करते हैं, उसकी गर्दा करते हैं, उसकी अवमानना, तर्जना और ताड़ना करते हैं (उसे मारते-पीटते हैं) / उसकी कदर्थना (विडम्बना) और भर्त्सना करते हैं, (उसकी बहत बुरी हालत करते हैं, उसे उठा-उठाकर खुब पटकते हैं। अपनी इच्छानसार उसे इधर-उधर घसीटते (खींचते) हैं। इस प्रकार उस शव की हीलना यावत् मनमानी खींचतान करके फिर उसे एकान्त स्थान में डाल देते हैं / फिर वे जिस दिशा से आये थे, उसी दिशा में वापस लौट गए। विवेचन-बलिचंचावासी असुरों द्वारा तामली तापस के शव की विडम्बना प्रस्तुत सूत्र में बालतपस्वी तामलो तापस का अनशनपूर्वक मरण हो जाने और ईशान देवलोक के इन्द्र के रूप में उत्पन्न होने पर क्रुद्ध बलिचंचावासी असुरों द्वारा उसके मृतशरीर की की गई विडम्बना का वर्णन है। क्रोध में असुरों को कुछ भी भान न रहा कि इसको प्रतिक्रिया क्या होगी ? प्रकुपिन ईशानेन्द्र द्वारा भस्मीभूत बलिचंचा देख, भयभीत असुरों द्वारा अपराधक्षमायाचना 47. तए णं ईसाणकप्पवासी बहवे वेमाणिया देवा य देवोनो य बलिचंचारायहाणिवत्थन्वएहि बहहिं असुरकुमारेहिं देवेहि देवीहि य तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलिज्जमाणं निदिज्जमाणं जाव प्राकड्ढविकड्ढेि कोरमाणं पासंति, 2 श्रासुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा जेणेव ईसाणे देविदे देवराया तेणेव उवागच्छति, 2 करयलपरिग्गहियं वसनहं सिरसावतं मत्थए अंजलि कटु जए विजएणं बद्धाति, 2 एवं वदासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! बलिचंचारायहाणिवस्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवी प्रो य देवाणुप्पिए कालगए जाणिता ईसाणे य कप्पे इंदत्ताए उववन्ने पासेत्ता प्रासुरुत्ता जाव एगते एडेंति, 2 जामेव दिसि पाउम्भूया तामेव दिसि पडिगया। [47] तत्पश्चात् ईशानकल्पवासी बहुत-से वैमानिक देवों और देवियों ने (इस प्रकार) देखा कि बलिचंचा-राजधानी-निवासी बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा तामली बालतपस्वी के मृत शरीर की हीलना, निन्दा और आक्रोशना की जा रही है, यावत् उस शव को मनचाहे ढंग से इधर-उधर घसीटा या खींचा जा रहा है। अतः इस प्रकार (तामली तापस के मृत शरीर की दुर्दशा होती) देखकर वे वैमानिक देव-देवीगण शीघ्र ही क्रोध से भड़क उठे यावत् क्रोधानल से तिलमिलाते (दांत पीसते हुए, जहाँ देवेन्द्र देवराज ईशान था, वहाँ पहुँचे / ईशानेन्द्र के पास पहुँचकर दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजलि करके 'जय हो, विजय हो' इत्यादि शब्दों से उस (तामली के जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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