________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [289 अवसर पर काल करके ईशान देवलोक के ईशावतंसक विमान में उपपातसभा की देवदूष्य-वस्त्र से आच्छादित देवशय्या में अंगुल के असंख्येय भाग जितनी अवगाहना में, ईशान देवलोक के इन्द्र के विरहकाल (अनुपस्थितिकाल) में ईशानदेवेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ। तत्काल उत्पन्न वह देवेन्द्र देवराज ईशान, आहारपर्याप्ति से लेकर यावत् भाषा-मनःपर्याप्ति तक, पंचविधि पर्याप्तियों से पर्याप्ति भाव को प्राप्त हुया–पर्याप्त हो गया। विवेचन --तामली बालतपस्वी की ईशानेन्द्र के रूप में उत्पत्ति-प्रस्तुत सूत्र में तामली तापस द्वारा स्वीकृत संलेखना एवं अनशन पूर्ण होने की तथा आयुष्य पूर्ण होने की अवधि बता कर ईशान देवलोक में ईशान-देवेन्द्र के रूप में उत्पन्न होने का वर्णन है। तामली तापस की कठोर बाल-तपस्या एवं संलेखनापूर्वक अनशन का सुफल-यहाँ शास्त्रकार ने तामली तापस की साधना के फलस्वरूप उपार्जित पुण्य का फल बताकर यह ध्वनित कर दिया है कि इतना कठोर तपश्चरण अज्ञानपूर्वक होने से कर्मक्षय का कारण न बनकर शुभकर्मोपार्जन का कारण बना। देवों में पांच ही पर्याप्तियों का उल्लेख-इसलिए किया गया है, कि देवों के भाषा और मनः पर्याप्ति एक साथ सम्मिलित बंधती है।३१ बलिचंचावासी असुरों द्वारा तामली तापस के शव की विडम्बना 46. तए णं बलिचंचारायहाणिवत्थन्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीमो य तालि बालतर्वास्स कालगयं जाणिता ईसाणे य कप्पे देविदत्ताए उववन्नं पासित्ता प्रासुरुत्ता कुविया चंडिविकया मिसिमिसेमाणा बलिचंचाए रायहाणोए मझमझेणं निग्गच्छति, 2 ताए उक्क्टिाए जाव जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्तो नयरी जेणेव तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरए तेणेव उवागच्छंति, 2 वामे पाए सुबेणं बंधति, 2 तिक्खुत्तो मुहे उहंति, 2 तामलित्तीए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्कचच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु प्राकड्ढविकदि करेमाणा महया 2 सद्देणं उग्घोसेमाणा 2 एवं वदासि-'केस णं भो! से तामली बालतवस्सी सयंगहिलिगे पाणामाए पन्चज्जाए पव्वइए ! केस णं से ईसाणे कप्पे ईसाणे देविदे देवराया' इति कटु तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरयं होलंति निदंति खिसंति गरिहंति प्रवमन्नति तज्जति तालेति परिवहेंति पन्वति आकड्ढविकढि करेंति, होलेत्ता जाय पाकड्ढविकढिं करेत्ता एगते एडेति, 2 जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। [46| उस समय बलिचंचा-राजधानी के निवासी बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों ने जब यह जाना कि तामली बालतपस्वी कालधर्म को प्राप्त हो गया है और ईशानकल्प (देवलोक) में वहाँ के देवेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुआ है, तो यह जानकर वे एकदम क्रोध से मूढमति हो गए, अथवा शीघ्र क्रोध से भड़क उठे, वे अत्यन्त कुपित हो गए, उनके चेहरे क्रोध से भंयकर उग्र हो गए वे क्रोध की आग से तिलमिला उठे और तत्काल वे सब बलिचंचा राजधानी के बीचोंबीच होकर निकले, यावत् उत्कृष्ट देवगति से इस जम्बूद्वीप में स्थित भरतक्षेत्र की ताम्रलिप्ती नगरी के बाहर, जहाँ तामली 31. भगवती विवेचन (पं. घेवरचन्दजो) भाग 2, पृ. 587 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org