________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [285 संलेखना तय माला जाहा पर तनपानमाला वज्जीव प्रत रखकर, ताम्रलिप्ती नगरी के उत्तर-पूर्व दिशा भाग (ईशान कोण) में निवर्तनिक (एक परिमित क्षेत्र विशेष, अथवा निजतनुप्रमाण स्थान) मंडल का आलेखन (निरीक्षण, सम्मान, या रेखा खींच कर क्षेत्रमर्यादा) करके, संल्लेखना तप से प्रात्मा को से वित कर माहार-पानी का सर्वथा त्याग (यावज्जीव अनशन) करके पादपोपगमन संथारा करूं और मृत्यु की आकांक्षा नहीं करता हुमा (शान्तचित्त से समभाव में) विचरण करू; मेरे लिए यही उचित है।' यों विचार करके प्रभातकाल होते ही यावत् जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर यावत् (पूर्वोक्त-पूर्वचिन्तित संकल्पानुसार सबसे यथायोग्य) पूछा / (विचार विनिमय करके) उस (तामली तापस) ने (ताम्रलिप्ती नगरी के बीचोंबीच से निकलकर अपने उपकरण) एकान्त स्थान में छोड़ दिये। फिर यावत् आहार-पानी का सर्वथा प्रत्याख्यान (त्याग) किया और पादपोपगमन नामक अनशन (संथारा)अंगीकार किया। विवेचन-बालतपस्वी तामलो द्वारा पादपोपगमन-अनशन-ग्रहण-प्रस्तुत सूत्रद्वय में तामली तापस के बालतपस्वी जीवन के तीन वृत्तान्त प्रतिपादित किये गए हैं—(१) उक्त घोर बालतप के कारण शरीर शुष्क, रूक्ष एवं अन्यन्त कृश हो गया। (2) एक रात्रि के पिछले पहर में क्रमशः विधिवत् संलेखना-संथारा करने का संकल्प किया / (3) संकल्पानुसार तामली तापस अपने परिचितों से पूछकर- उनकी अनुमति लेकर ताम्रलिप्ती के ईशानकोण में संल्लेखनापूर्वक पादपोपगमन अनशन की आराधना में संलग्न हुआ। सर्वथा प्रत्याख्यान साधक काय और कषाय को कृश करने वाला संल्लेखना तप स्वीकार करता है। पादपोपगमन-अनशन-इस अनशन का धारक साधक गिरे हुए पादप (वृक्ष) की तरह निश्चेष्ट होकर आत्मध्यान में मग्न रहता है।' बलिचंचावासी देवगरण द्वारा इन्द्र बनने की विनति : तामली तापस द्वारा अस्वीकार 41. तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहाणी अणिदा अपुरोहिया यावि होत्था / तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थन्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तालि बालतर्वास्स योहिणा प्राभोयंति, 2 अन्नमन्नं सदावेंति, 2 एवं बयासी-"एवं खलु देवाणुप्पिया! बलिचंचा रायहाणी अजिंदा अपुरोहिया, अम्हे य पं देवाणुप्पिया ! इंदाधीणा इंदाधिट्टिया इंदाहीणकज्जा। अयं च णं देवाणुप्पिया ! तामलो बालतवस्सी तामलित्तीए नगरीए बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए नियत्तणियमंडलं आलिहिता संलेहणाभूसणाभूसिए भत्त-पाणपडियाइक्खिए पायोवगमणं निवन्ने / तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्हं तालि बालतर्वास्स बलिचंचाए रायहाणीए ठितिपकप्पं पकरावेत्तए" ति कट्ट अन्नमन्नस्स अंतिए एयमढे पडिसुणेति, 2 बलिचंचाए रायहाणीए मज्झमझणं निग्गच्छंति, 2 जेणेव स्यांगवे उप्पायपवए तेणेव उवागच्छंति, 2 वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणति जाव उत्तर वेउविवाई रूवाइं विकुव्वंति, 2 ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जइणाए छेयाए सोहाए सिग्याए दिव्वाए उद्धृयाए देवगतीए तिरियमसंखेज्जाणं दीव-समुद्दाणं मज्झमझेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे 1. भगवतीसूत्र अमेयचन्द्रिका टीका भा. 3 (पू. पासीलालजी म.) पृ. 215 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org