________________ 282 ] / व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र घूमता था। भिक्षा में वह केवल भात लाता और उन्हें 21 बार पानी से धोता था, तत्पश्चात् पाहार करता था। विवेचन -- ईशानेन्द्र का पूर्वभव : तामली का संकल्प और प्राणामा प्रवज्या ग्रहण-प्रस्तुत तीन सूत्रों में तीन तथ्यात्मक वृत्तान्त प्रस्तुत किये गये हैं १--ईशानेन्द्र के पूर्वभव के विषय में गौतमस्वामी का प्रश्न / २-तामली गृहपति और उसका प्राणामा प्रवज्याग्रहण का संकल्प / ३--संकल्पानुसार विधिपूर्वक प्राणामा प्रव्रज्याग्रहण और पालन / तामलित्ती-ताम्रलिप्ती- भगवान् महावीर से पूर्व भी यह नगरी बंगदेश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध थी / तामली गृहपति के प्रकरण से भी यह बात सिद्ध होती है कि बंगदेश ताम्रलिप्ती के कारण गौरवपूर्ण अवस्था में पहुँचा हुआ था। अनेक नदियाँ होने के कारण जलमार्ग और स्थलमार्ग दोनों से माल का आयात-निर्यात होने के कारण व्यापार की दृष्टि से तथा सरसब्ज होने से उत्पादन की दष्टि से भी यह समृद्ध था / वर्तमान 'ताम्रलिप्तों' का नाम अपभ्रष्ट होकर 'तामलक' हो गया है, यह कलकत्ता के पास मिदनापुर जिले में है। मौर्यपुत्र-तामली-तामली गृहपति का नाम ताम्रलिप्ती नगरी के आधार पर तामली (ताम्रलिप्त) रखा गया मालूम होता है / मौर्यपुत्र उसका विशेषण है। 'मुर' नाम की कोई प्रसिद्ध जाति थी, जिस के कारण यह वंश 'मोर्य' नाम से प्रसिद्ध हुआ। जो भी हो, ताम्रलिप्ती के गृहपतियों में मौर्यवंश ख्यातिप्राप्त था।' कठिन शब्दों के विशेष अर्थ--पुव्वरतावरत्तकालसमयंसि = पूर्वरात्र (रात्रि का पहला भाग) और अपररात्र (रात्रि के पिछले भाग के बीच में मध्यरात्रिकाल के समय (शब्दशः अर्थ); अथवा पूर्वरात्रि व्यतीत होने के बाद अपररात्रि (रात्रि के पश्चिम भाग) काल के समय (परम्परागत अर्थ) / अज्झथिए = आध्यात्मिक (आत्मगत अध्यवसाय)-संकल्प / कल्लामफलवित्तिविसे सो= कल्याणकारी फलविशेष / वड्ढामि -(शब्दश:) बढ़ रहा हूँ, (भावार्थ) घर में बढ़ रहा है / किण्णा = किस हेतु (कारण) से / जिमिय भुत्तुत्तरागए जीम (भोजन) करके, भोजनोत्तरकाल में अपने उपवेशनबैठने के स्थान में आ गया। प्रायंते शुद्ध जल से आचमन करके, तथा चोक्खे-भोजन के कण, लेप, छींटे आदि दूर करके मुह साफ किया, और परमसूइन्भूए = अत्यन्त (बिलकुल) शुचिभूत (साफ-सुथरा) प्रव्रज्या का नाम 'प्रारणामा' रखने का कारण 38. से केणठेणं भंते. ! एवं बुच्चइ-पाणामा पच्वज्जा ? गोयमा ! पाणामाए णं पन्चज्जाए पब्वइए समाणे जं जत्थ पासइ इंदं वा खंदं वा रुई वा (क) व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) (टोकानुवाद टिप्पण सहित) (पं. वेचरदासजी) खण्ड 2, पृ. 24 (ख) इससे लगता है चन्द्रगुप्त मौर्य से पूर्व भी मौर्य वंश विद्यमान था -सम्पादक (क) भगवती मूत्र अ. वृत्ति. पत्रांक 163 (ख) भगवती सूत्र विवेचन युक्त (पं. घेवरचन्दजी) भा. 2, पृ. 576 (ग) व्याख्याप्रज्ञप्ति टीकानूवाद (पं. बेचरदास जी) खण्ड 2 . 41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org