SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 276] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ___ पगिभिय' आदि कठिन शब्दों के अर्थ--पगिज्भिय = ग्रहण करके-करके / पारद्धा उरिल्ला-से लेकर ऊपर के / ' मोकानगरी से विहार और ईशानेन्द्र द्वारा भगवद्वन्दन---- ___31. तए णं समणे भगवौं महावीरे अन्नया कयाई मोयानो नगरीमो नंदणाम्रो चेतियानो पडिनिक्खमइ, 2 बहिया जणवयविहारं विहरइ / [31] इसके पश्चात् किसी एक दिन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी 'मोका' नगरी के 'नन्दन' नामक उद्यान से बाहर निकलकर (अन्य) जनपद में विचरण करने लगे। 32. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था। वण्णप्रो। जाव परिसा पज्जुवासइ। [32] उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। उसका वर्णन औपपातिकसूत्र के नगरी वर्णन के समान जानना चाहिए / (भगवान् वहाँ पधारे) यावत् परिषद् भगवान् को पर्युपासना करने लगी। 33. तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविदे देवराया सूलपाणी वसभवाहणे उत्तरड्ढलोगाहिवई प्रदाबीसविमाणावाससयसहस्साहिवई प्ररयंबरवत्थधरे आलइयमालमउडे नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे जाव दस दिसाप्रो उज्जोवेमाणे पभासेमाणे ईसाणे कप्पे ईसाणवडिसए विमाणे जहेव रायपसेणइज्जे जाव (राज० पत्र 44-54) दिव्वं वेविड्ढि जाव जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए। [33] उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज, शूलपाणि (हाथ में शूल-त्रिशूल धारक) वृषभ-वाहन (बैल पर सवारी करने वाला) लोक के उत्तरार्द्ध का स्वामी, अट्ठाईस लाख विमानों का अधिपति, आकाश के समान रजरहित निर्मल वस्त्रधारक, सिर पर माला से सुशोभित मुकुटधारी, नवीनस्वर्ण निर्मित सुन्दर, विचित्र एवं चंचल कुण्डलों से कपोल को जगमगाता हुआ यावत् दसों दिशाओं को उद्योतित एवं प्रभासित करता हुआ ईशानेन्द्र, ईशानकल्प में ईशानावतंसक विमान में (रायपसेणीय-राजप्रश्नीय उपांग में कहे अनुसार) यावत् दिव्य देवऋद्धि का अनुभव करता हुआ (भगवान् के दर्शन-वन्दन करने पाया) और यावत् जिस दिशा से आया था उसी दिशा में वापस चला गया। विवेचन-मोका नगरी से विहार और ईशानेन्द्र द्वारा भगवद्वन्दन-प्रस्तुत तीन सूत्रों (31 से 33 तक) में शास्त्रकार ने तीन बातों का संकेत किया है १-मोकानगरी से भगवान् का बाह्य जनपद में विहार / २-राजगृह ने भगवान् का पदार्पण और परिषद् द्वारा पर्युपासना / 1. भगवतीसूत्र अ० वृत्ति, पत्रांक 160 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy