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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [275 ईशानेन्द्र एवं शकेन्द्र में समानता और विशेषता-यद्यपि शकेन्द्र के प्रकरण में कही हुई बहुतसी बातों के साथ ईशानेन्द्र के प्रकरण में कही गई बहुत-सी बातों को समानता होने से ईशानेन्द्र-प्रकरण को शकेन्द्र-प्रकरण के समान बताया गया है, तथापि कुछ बातों में विशेषता है। वह इस प्रकारईशानेन्द्र के 28 लाख विमान, 80 हजार सामानिक देव और 3 लाख 20 हजार प्रात्मरक्षक देव हैं; तथा ईशानेन्द्र की वैक्रियशक्ति सम्पूर्ण दो जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक स्थल को भरने की है, जो शकेन्द्र की वैक्रियशक्ति से अधिक है।' सनत्कुमार से लेकर अच्युत तक के इन्द्रादि की क्रियशक्ति-सनत्कुमार देवेन्द्रादि की वैक्रियशक्ति सम्पूर्ण चार जम्बूद्वीपों तथा तिरछे असंख्येय द्वीप-समुद्रों जितने स्थल को भरने की है, माहेन्द्र की सम्पूर्ण चार जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक की, ब्रह्मलोक की सम्पूर्ण आठ जम्बूद्वीपों को भरने की, लान्तक की सम्पूर्ण आठ जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक की, महाशुक्र की 16 पूरे जम्बूद्वीपों को भरने की, सहस्रार की 16 जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक की, प्राणत की 32 पूरे जम्बूद्वीपों के भरने की और अच्युत की 32 पूरे जम्बूद्वीपों से कुछ अधिक की है।' ____ सनत्कुमार देवलोक में देवी कहाँ से ? - यद्यपि सनत्कुमार देवलोक में देवी उत्पन्न नहीं होती, तथापि सौधर्म देवलोक में जो अपरिगृहीता देवियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनकी स्थिति समयाधिक पल्योपम से लेकर दस पल्योपम तक की होती है। वे अपरिगहीता देवियाँ सनत्कुमारदेवों की भोग्या होती हैं, इसी कारण सनत्कुमार-प्रकरण के मूलपाठ में 'अम्गमहिसीणं' कहकर अग्रमहिषियों का उल्लेख किया गया है। देवलोकों के विमानों की संख्या-सौधर्म में 32 लाख, ईशान में 28 लाख, सनत्कुमार में 12 लाख, माहेन्द्र में 8 लाख, ब्रह्मलोक में 4 लाख, लान्तक में 50 हजार, महाशुक्र में 40 हजार, सहस्रार में 6 हजार, आनत और प्राणत में 400 तथा प्रारण और अच्युत में 300 विमान हैं। सामानिक देवों की संख्या-पहले देवलोक में 84 हजार, दूसरे में 50 हजार, तीसरे में 72 हजार, चौथे में 70 हजार, पांचवें में 60 हजार, छठे में 50 हजार, सातवें में 40 हजार, आठवें में 30 हजार, नौवें और दसवें में 20 हजार तथा ग्यारहवें और बारहवें देवलोक में 10 हजार सामानिक देव हैं / 1. (क) भगवती सूत्र अ. बृत्ति, पत्रांक 160 (ख) भगवती० टीकानुवादसहित, खं० 2, पृ. 22 2. व्याख्याप्रज्ञप्ति (वियाहपन्नत्तीसुत्त) (मूलपाठ टिप्पण) भा० 1, पृ० 127-128 3. भगवती सूत्र न वृत्ति, पत्रांक 160 4. (क) भगवती सूत्र अ० वृत्ति, पत्रांक 160 (ख) प्रज्ञापनासूत्र (क० प्रा० पृ० 128) में निम्नोक्त गाथायों से मिलती जुलती गाथाएँ बत्तीस अट्ठावीसा बारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा / ग्रारणे बंभलोया विमाणसंखा भवे एसा // 1 // पण्णासं चत्त छच्चेव सहस्सा लंतक-सुक्क-सहस्सारे / सय चउरो प्राणय-पाणएसु, तिणि प्रारण्णऽच्चु यो // 2 // चउरासीई असीई बावत्तरी सत्तरी य सट्ठी य / / पण्णा चत्तालीसा तीसा बीसा दससहस्सा / / 3 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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