________________ 266] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन-शेष भवनपति, वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्क देवों के इन्द्रों और उनके अधीनस्थ देववर्ग को ऋद्धि, विकुर्वणा-शक्ति प्रादि-प्रस्तुत सूत्र में असुरकुमार एवं नागकुमार को छोड़कर स्तनितकुमार पर्यन्त शेष समस्त भवनपति, वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्क देवों के इन्द्रों तथा उनके अधीनस्थ सामानिक, त्रायस्त्रिश एवं लोकपाल तथा अग्रम हिषियों की ऋद्धि प्रादि तथा विकुर्वणाशक्ति को निरूपण पूर्ववत् बताया है। भवनपति देवों के बोस इन्द्र---भवनपतिदेवों के दो निकाय हैं—दक्षिण निकाय (दाक्षिणात्य) और उत्तरी निकाय (औदीच्य) / वैसे भवनपतिदेवों के दस भेद हैं---असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, पवनकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार, दिशाकुमार. और स्तनित कुमार / इसी जाति के इसी नाम के दस-दस प्रकार के भवनपति दोनों निकायों में होने से बीस भेद हुए। इन बीस प्रकार के भवनपति देवों के इन्द्रों के नाम इस प्रकार हैं-चमर, धरण, वेणुदेव, हरिकान्त, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त, अमित, विलम्ब (विलेव) और घोष (सुघोष)। ये दस दक्षिण निकाय के इन्द्र हैं। बलि, भूतानन्द, वेणुदालि (री), हरिस्सह, अग्निमाणव, (अ) वशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष, ये दस उत्तर निकाय के इन्द्र हैं। प्रस्तुत में चमरेन्द्र, बलीन्द्र, एवं धरणेन्द्र को छोड़ कर अधीनस्थ देववर्ग सहित शेष, 17 इन्द्रों की ऋद्धि-विकुर्वणाशक्ति इत्यादि का वर्णन जान लेना चाहिए / भवन-संख्या-इनके भवनों की संख्या-'चउत्तोसा चउचत्ता' इत्यादि पहले कही हुई दो गाथाओं में बतला दी गई है। सामानिकदेव-संख्या-चमरेन्द्र के 64 हजार और बलीन्द्र के 60 हजार सामानिक है, इस प्रकार असुरकुमारेन्द्रद्वय के सिवाय शेष सब इन्द्रों के प्रत्येक के 6-6 हजार सामानिक हैं / प्रात्मरक्षक देव संख्या-जिसके जितने सामानिक देव होते हैं, उससे चौगुने आत्मरक्षक देव होते हैं। अग्रमाहिषियों को संख्या-चमरेन्द्र और बलीन्द्र के पांच-पांच अग्रमहिषियाँ हैं, प्रागे धरणेन्द्र आदि प्रत्येक इन्द्र के छह-छह अग्रमहिषियाँ हैं। त्रायस्त्रिश और लोकपालों की संख्या नियत है। व्यन्तरदेवों के सोलह इन्द्र-व्यन्तरदेवों के 8 प्रकार हैं-पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व / इनमें से प्रत्येक प्रकार के व्यन्तरदेवों के दो-दो इन्द्र होते हैं-एक दक्षिण दिशा का, दुसरा उत्तरदिशा का। उनके नाम इस प्रकार हैं—काल और महाकाल, सूरूप (प्रतिरूप) और प्रतिरूप, पूर्णभद्र और मणिभद्र, भीम और महाभोम, किन्नर और किम्पुरुष, सत्पुरुष और महापुरुष, अतिकाय और महाकाय, गीतरति और गीतयश। व्यन्तर इन्द्रों का परिवार-बाणव्यन्तर देवों में प्रत्येक इन्द्र के चार-चार हजार सामानिक देव और इनसे चार गुने अर्थात् प्रत्येक के 16-16 हजार प्रात्मरक्षक देव होते हैं / इनमें त्रास्त्रिश और लोकपाल नहीं होते / प्रत्येक इन्द्र के चार-चार अग्रमहिषियां होती हैं / ज्योतिष्कन्द्र परिवार-ज्योतिष्क निकाय के 5 प्रकार के देव हैं—सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा / इनमें सूर्य और चन्द्र दो मुख्य एवं अनेक इन्द्र हैं। इनके भी प्रत्येक इन्द्र के चार-चार हजार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org