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________________ तृतीय शतक : उद्देशक-१] [265 [13 उ.] गौतम ! वह नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र महाऋद्धि वाला है, यावत् वह चवालीस लाख भवनावासों पर, छह हजार सामानिक देवों पर, तेतीस त्रास्त्रिशक देवों पर, चार लोकपालों पर, परिवार सहित छह अग्रमहिषियों पर, तीन सभाओं (परिषदों) पर, सात सेनाओं पर, सात सेनाधिपतियों पर, और चौबीस हजार प्रात्मरक्षक देवों पर तथा अन्य अनेक दाक्षिणात्य कुमार देवों और देवियों पर आधिपत्य, नेतृत्व, स्वामित्व यावत् करता हुआ रहता है। उसकी विकुर्वणाशक्ति इतनी है कि जैसे युवापुरुष युवती स्त्री के करग्रहण के अथवा गाड़ी के पहिये की धुरी में संलग्न आरों के दृष्टान्त से (जैसे वे दोनों संलग्न दिखाई देते हैं, उसी तरह से) यावत् वह अपने द्वारा वैक्रियकृत बहुत-से नागकुमार देवों और नागकुमारदेवियों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को भरने में समर्थ है और तियग्लोक के संख्येय द्वीप-समूद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति वाला है / परन्तु यावत् (जम्बूद्वीप को या संख्यात द्वीप-समुद्रों जितने स्थल को उक्त रूपों से भरने की उनकी शक्तिमात्र है, क्रियारहित विषय है) किन्तु ऐसा उसने कभी किया नहीं, करता नहीं और भविष्य में करेगा भी नहीं। धरणेन्द्र के सामानिक देव, त्रायस्त्रिशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों की ऋद्धि आदि तथा वैक्रिय शक्ति का वर्णन चमरेन्द्र के वर्णन की तरह कह लेना चाहिए / विशेषता इतनी ही है कि इन सबकी विकुर्वणाशक्ति संख्यात द्वीप-समुद्रों तक के स्थल को भरने की समझनी चाहिए। विवेचन-नागकुमारेन्द्र धरण और उसके अधीनस्य देववर्ग की ऋद्धि प्रादि तथा विकुर्वणाशक्ति प्रस्तुत सूत्र में नागकुमारेन्द्र धरण और उनके अधीनस्थ देववर्ग सामानिक, नास्त्रिश, लोकपाल और अग्रमहिषियों की ऋद्धि प्रादि का तथा विकुर्वणाशक्ति का वर्णन किया गया है। नागकुमारों के इन्द्र–धरणेन्द्र का परिचय-दाक्षिणात्य नागकुमारों के ये इन्द्र हैं। इनके निवास, लोकपालों का उपपात पर्वत, पाँच युद्ध सैन्य, पांच सेनापति एवं छह अनमहिषियों का वर्णन स्थानांग एवं प्रज्ञापना सूत्र में है। नागकुमारेन्द्र धरण की छह अग्रमहिषियों के नाम इस प्रकार हैंअल्ला, शक्रा, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा और घनविद्युता।' शेष भवनपति, वारगव्यन्तर एवं ज्योतिष्क देवों के इन्द्रों और उनके अधीनस्थ देववर्ग की ऋद्धि, विकुर्वरणाशक्ति आदि का निरूपण 14. एवं जाव थपियकुमारा, वाणमंतर-जोतिसिया वि। नवरं दाहिणिल्ले सत्वे अग्गीभूती पुच्छति, उत्तरिल्ले सन्वे वाउभूती पुच्छइ / [14] इसी तरह यावत् 'स्तनितकुमारों तक सभी भवनपतिदेवों (के इन्द्र और उनके अधीनस्थ देववर्ग की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणा-शक्ति) के सम्बन्ध में कहना चाहिए / इसी तरह समस्त वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों (के इन्द्र एवं उनके अधीनस्थ देवों की ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणाशक्ति) के विषय में कहना चाहिए / विशेष यह है कि दक्षिण दिशा के सभी इन्द्रों के विषय में द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार पूछते हैं और उत्तरदिशा के सभी इन्द्रों के विषय में तृतीय गौतम वायुभूति अनगार पूछते हैं / 1. (क) प्रज्ञापनासूत्र क. आ., पृ. 105-106 (ख) स्थानांग क. पा., पृ. 550, 357, 416 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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