________________ 264 ] 1 व्याल्याप्रज्ञप्तिसून शक्ति प्रस्तुत दो सूत्रों (11-12 सू.) में वैरोचनेन्द्र बलि तथा उसके अधीनस्थ देववर्ग सामानिक, त्रास्त्रिश, लोकपाल एवं अग्रमहिषियों की ऋद्धि एवं विकुर्वणाशक्ति के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर का निरूपण किया गया है। ये प्रश्न वायुभूति अनगार के हैं और उत्तर श्रमण भगवान् महावीर ने दिये हैं। 'वैरोचनेन्द्र का परिचय-दाक्षिणात्य असुरकुमारों की अपेक्षा जिनका रोचन (दीपनकान्ति) अधिक (विशिष्ट) है, वे देव वैरोचन कहलाते हैं। वैरोचनों का इन्द्र वैरोचनेन्द्र है / ये उत्तरदिशावर्ती (औदीच्य) असुरकुमारों के इन्द्र हैं। इन देवों के निवास, उपपातपर्वत, इनके इन्द्र, तथा अधीनस्थ देववर्ग, वैरोचनेन्द्र की पांच अग्रमहिषियों आदि का सब वर्णन स्थानांगसूत्र के दशम स्थान में हैं / बलि वैरोचनेन्द्र की पांच अग्रमहिषियाँ हैं-शुम्भा, निशुम्भा, रंभा, निरंभा और मदना। इन का सब वर्णन प्राय: चमरेन्द्र की तरह है। इसकी विकुर्वणा शक्ति सातिरेक जम्बूद्वीप तक की है, क्योंकि औदीच्य इन्द्र होने से चमरेन्द्र की अपेक्षा वैरोचनेन्द्र बलि की लब्धि विशिष्टतर होती है।' नागकुमारेन्द्र धरण और उसके अधीनस्थ देववर्ग को ऋद्धि आदि तथा विकुर्वणाशक्ति 13. तए गं से दोच्चे गो० अग्गिभूती अण० समणं भगवं पंदइ०, 2 एवं वदासि–जति णं भंते ! बलो वरोर्याणदे वइरोयणराया एमहिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुवित्तए धरणे णं भंते ! नागकुमारिदे नागकुमारराया केहिड्ढोए जाव केवतियं च णं पभू विकुवित्तए ? गोयमा ! धरणे णं नागकुमारिदे नागकुमारराया एमहिड्ढोए जाव से णं तत्य चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं, छहं सामाणियसाहस्सोणं, तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, छण्हं प्रगमहिसीण सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवतोणं, चउवीसाए प्रायरक्खदेवसाहस्सीणं, अन्नेसि च जाव विहरइ। एवतियं च णं पभ विउवित्तए से जहानामए जुवति जुवाणे जाव (सु. 3) पभ केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीव जाव तिरियमसंखेज्जे दोव-समुद्दे बहूहि नागकुमारेहि नागकुमारीहि जाव विउव्विस्सति वा / सामाणिय-तायत्तीस-लोगपालऽग्गमहिसीनो य तहेव जहा चमरस्स (सु. 4-6) / नवरं संखिज्जे दीव-समुद्दे भाणियन्वं / [13 प्र.] तत्पश्चात् द्वितीय गौतम अग्निभूति अन गार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहा- 'भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि इस प्रकार की महाऋद्धि वाला है यावत इतनी विकूर्वणा करने में समर्थ है, तो भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण कितनी बड़ी ऋद्धि वाला है ? यावत् कितनी विकुर्वणा करने में समर्थ है ?' (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 157 (ख) स्थानांग, स्था. 10 (ग) ज्ञातासूत्र, वर्ग 2, अ. 1 से 5 तक (घ) 'विशिष्ट रोचन–दीपनं (कान्तिः) येषामस्ति ते वैराचना प्रौदीच्या असूराः, तेषु मध्ये इन्द्रः परमेश्वरो वैरोचनेन्द्रः / ' ___-भगवती, अ. वृत्ति 157 प., स्था. वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org