________________ 744]] [व्याल्याप्रज्ञप्तिसूत्र 6. ते णं भंते ! जीवा कहं उववज्जति ? गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे एवं जहा उबवायसए (स० 25 उ०८ सु०२-८) जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जति / [6 प्र.] भगवन् ! वे जीव (तथाकथित नारक) कैसे उत्पन्न होते हैं ? [6 उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला (कूदता हुया अपने पूर्वस्थान को छोड़ कर आगे के स्थान को प्राप्त करता है, इसी प्रकार) इत्यादि उपपातशतक (श० 25, उ० 8, सू० 2-8 में उक्त उपपात-कथन) के अनुसार यावत् वे प्रात्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं, यहाँ तक कहना चाहिए। 7. [1] ते णं भंते ! जीवा कि प्रायजसेणं उववज्जंति, प्रायजसेणं उक्वज्जति ? गोयमा ! नो प्रायजसेणं उववज्जति, प्रायजसेणं उववज्जति / [7-1 प्र.। भगवन ! वे जीव आत्म-यश (प्रात्म-संयम) से उत्पन्न होते हैं अथवा आत्मअयश (आत्म-असंयम) से उत्पन्न होते हैं ? [7-1 उ.] गौतम ! वे आत्म-यश से उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं। [2] जति प्रायजसेणं उववज्जति कि प्रायजसं उवजीवंति, प्रायअजसं उपजीवंति ? गोयमा ! नो आयजसं उवजीवंति, प्रायजसं उवजीवंति। [7-2 प्र.] भगवन् ! यदि वे जीव प्रात्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे आत्म-यश से जीवन चलाते हैं अथवा आत्म-अयश से जीवननिर्वाह करते हैं ? [7-2 उ.] गौतम ! वे आत्म-यश से जीवननिर्वाह नहीं करते, किन्तु प्रात्म-अयश से करते हैं। [3] जति आयनजसं उवजीवंति कि सलेस्सा, अलेस्सा? गोयमा ! सलेस्सा, नो प्रलेस्सा। [7-3 प्र.] भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से अपना जीवन चलाते हैं, तो वे सलेश्यी होते हैं अथवा अलेश्यी? [7-3 उ.] गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं, अलेश्यी नहीं। [4] जति सलेस्सा कि सकिरिया, अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया। [7-4 प्र.] भगवन् ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय (क्रियासहित) होते हैं या प्रक्रिय (क्रियारहित) होते हैं ? [7-4 उ.] गौतम ! वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं। [5] जति सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति ? णो इणठे समठे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org