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________________ एकसातीसवां शतक : ज्देशक 1) [74 3. ते गं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! बत्तारि वा, अट्ठ वा, बारस वा, सोलस या, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उवयजति / [3 प्र.] भगवन् ! वे (पूर्वोक्त विशेषणविशिष्ट) जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [3 उ.] गौतम ! वे एक समय में चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। 4. ते णं भंते ! जीवा कि संतरं उववज्जति, निरंतरं उववज्जति ? गोयमा! संतरं पिउववज्जति, निरंतरं पि उववज्जति / संतरं उवयज्जमाणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उस्कोसेणं असंखेज्जे समये अंतरं कटु उववज्जंति; निरंतरं उववज्जमाणा जहन्नेणं दो समया, उक्कोसेणं असंखेज्जा समया अणुसमयं अविरहियं निरंतरं उववज्जति / [4 प्र.] भगवन् ! वे जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? / [4 उ.] गौतम ! वे जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी / जो सान्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट प्रसंख्यात समय का अन्तर करके उत्पन्न होते हैं। जो निरन्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय तक निरन्तर प्रतिसमय अविरहितरूप से उत्पन्न होते हैं / 5. [1] ते णं भंते ! जोवा जं समयं कडजुम्मा तं समयं तेयोगा, अं समयं तेयोगा तं समयं कहनुम्मा? णो इणठे समझें। [5-1 प्र.] भगवन ! वे जीव जिस समय कृतयुग्म राशिरूप होते हैं, क्या उसी समय योजराशिरूप होते हैं और जिस समय योजराशियुक्त होते हैं, उसी समय कृतयुग्मराशिरूप होते हैं ? [5-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं / [2] जं समयं कडजुम्मा तं समयं दावरजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं कडजुम्मा ? णो इणठे समठे। [5-2 प्र.] भगवन् ! जिस समय वे जीव कृतयुग्मरूप होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्मरूप होते हैं तथा जिस समय वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं, उसी समय कृतयुग्मरूप होते हैं ? {5-2 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [3] जं समयं कडजुम्मा तं समयं कलियोगा, जं समयं कलियोगा तं समयं कडजुम्मा ? णो इणठे समझें। [5-3 प्र.] भगवन् ! जिस समय वे कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं तथा जिस समय कल्योज होते हैं, उस समय कृतयुग्मराशि होते हैं ? [5-3 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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