________________ इकतालीसवां शतक : उद्देशक 1] [745 [7-5 प्र.] भगवन् ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो जाते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? [7-5 उ.] गौतम ! उनके लिए यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है / 8. रासोजुम्मकडजुम्मनसुरकुमारा णं भंते ! को उववज्जति ? जहेव नेरतिया तहेव निरवसेसं / [8 प्र.] भगवन् ! राशियुग्म-कृतयुग्मराशिरूप असुरकुमार (आदि) कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [8 उ.] जिस प्रकार नैरयिकों के विषय में कथन किया है, उसी प्रकार सभी कथन करना चाहिए। ___6. एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिया, नवरं वणस्सतिकाइया जाव असंखेज्जा वा अणंता वा उपवज्जति / सेसं एवं चेव / [6] यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तक सारी वक्तव्यता इसी प्रकार कहनी चाहिए, विशेष--- वनस्पतिकायिक जीव यावत् असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं, (यह कहना चाहिए / ) शेष सब पूर्वोक्त कथन के समान है। 10. [1] मणुस्सा वि एवं चेव जाव नो प्रायजसेणं उववज्जति, प्रायजसेणं उववज्जति / [10-1] मनुष्यों से सम्बन्धित कथन भी इसी प्रकार यावत् वे आत्म-यश से उत्पन्न नहीं होते, किन्तु प्रात्म-अयश से उत्पन्न होते हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। [2] जति प्रायजसेणं उववज्जंति कि प्रायजसं उवजीवंति, आयनजसं उबजीवंति ? गोयमा ! प्रायजसं पि उवजीवंति, प्रायजसं पि उबजीवंति / [10-2 प्र.] भगवन् ! यदि वे (मनुष्य) आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या प्रात्म-यश से जीवन- निर्वाह करते हैं या यात्म-अयश से जीवन चलाते हैं? [10-2 उ.] गौतम ! अात्म-यश से भी जीवन चलाते हैं और प्रात्म-अयश से भी। [3] जति प्रायजसं उवजीयंति कि सलेस्सा, अलेस्सा? गोयमा ! सलेस्सा वि, प्रलेस्सा वि / [10-3 प्र.] भगवन् ! यदि वे प्रात्मयश से जीवन-निर्वाह करते हैं तो सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी? [10-3 उ.] गौतम ! वे सले श्यी भी होते हैं और अलेश्यी भी। [4] जति प्रलेस्सा कि सकिरिया, प्रकिरिया ? गोयमा ! नो सकिरिया, अकिरिया। [10-4 प्र.] भगवन् ! यदि वे अलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? [10-4 उ.] गौतम ! वे सक्रिय नहीं होते, किन्तु अक्रिय (क्रियारहित) होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org