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________________ 728] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र इसी प्रकार सोलह ही युग्मों में कहना चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् / 3. एवं एए वि एक्कारस उद्देसगा कण्हलेस्ससए / पढम-ततिय-पंचमा सरिसगमा / सेसा अट्ठ वि सरिसगमा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० // 40 // 2 // 3-11 // // चत्तालीसइमे सए : बितियं सयं समत्तं / / 40-2 // [3] इस प्रकार इस कृष्णले श्याशतक में ग्यारह उद्देशक हैं। प्रथम, तृतीय और पंचम, ये तीनों उद्देशक एक समान हैं / शेष पाठ उद्देशक एक समान हैं / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं / / 4012 // 3-11 // विवेचन स्पष्टीकरण- यहाँ कृष्णलेश्यीकृतयुग्म कृतयुग्म संज्ञीपंचेन्द्रिय सातवीं नरकपृथ्वी के नैरयिक की उत्कृष्ट स्थिति और पूर्वभव के अन्तिम परिणाम की अपेक्षा अन्तर्मुहर्त मिलाकर अन्तमहत अधिक तेतीस सागरोपम होता है / ' // चालीसवां शतक : द्वितीय अवान्तरशतक सम्पूर्ण // 1. (क) भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 970 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3770 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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