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________________ तइए सन्निपंचिंदियमहाजुम्मसए : एक्का रस उद्देसगा तृतीय संज्ञोपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक : ग्यारह उद्देशक नीललेश्यी संजीपंचेन्द्रिय की वक्तव्यता 1. एवं नीललेस्सेतु वि सयं / नवरं संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्के समयं, उक्कोसेणं दस सागरोवमाई पलिग्रोवमस्स असंखेज्जइभागममहियाई; एवं ठिती वि। एवं तिसु उद्देसएसु / सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० // 40 / 3 / 1-11 // चित्तालीसडमे सते ततियं सयं समत्तं / / 40-3 // |1] नोललेश्या वाले संज्ञी की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी चाहिए। विशेष यह है कि इसका संचिटुणाकाल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम है। स्थिति भी इसी प्रकार समझनी चाहिए / इसी प्रकार पहले, तीसरे, पांचवें इन तीन उद्देशकों के विषय में जानना चाहिए / शेष पूर्ववत् / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् / विवेचन-नीललेश्याविशिष्ट संज्ञी. पं. की आयु.-पांचवीं नरकपृथ्वी के ऊपर के प्रतर में पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागरोपम का उत्कृष्ट अायुष्य है और वहाँ तक नीललेश्या है। यहाँ पूर्वभव के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त का पल्योपम के असंख्यातवें भाग में ही समाविष्ट कर दिया है, इस कारण उस अन्तमहत का कथन नहीं किया गया है।' // चालीसवां शतक : तृतीय अवान्तरशतक सम्पूर्ण // 1. (क) भगवती अ. वत्ति, पत्र 975 (ख) भगवनी. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3771 [729 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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