SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-10 ] 14 उ.] गौतम ! अधोलोक धर्मास्तिकाय के प्राधे से कुछ अधिक भाग को स्पर्श करता है। 15. तिरियलोए णं भंते ! * पुच्छा। गोयमा! असंखेज्जइभागं फुसइ / [15 प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को तिर्यग्लोक स्पर्श करता है ? पृच्छा / [15 उ.] गौतम ! तिर्यग्लोक धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग को स्पर्श करता है। 16. उड्ढलोए णं भंते ! * पुच्छा / गोयमा ! देसोणं अद्ध फुसइ / [16 प्र] भगवन् ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को ऊर्ध्वलोक स्पर्श करता है ? [16 उ.] गौतम ! ऊर्वलोक धर्मास्तिकाय के देशोन (कुछ कम) अर्धभाग को स्पर्श करता है। 17. इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी धम्मत्यिकायस्स कि संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइमागं फुसइ ? संखिज्जे भागे फुसति ? प्रसंखेज्जे भागे फुसति ? सम्वं फुसति ? गोयमा ! णो संखेज्जइभागं फुसति, प्रसंखेज्जइभागं फुसइ, णो संखेज्जे०, णो असंखेज्जे०, नो सव्वं फुसति / [17 प्र.] भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी, क्या धर्मास्तिकाय के संख्यात भाग को स्पर्श करती है या असंख्यात भाग को स्पर्श करती है, अथवा संख्यात भागों को स्पर्श करती है या असंख्यात भागों को स्पर्श करती है अथवा समग्र को स्पर्श करती है ? [17 उ.। गौतम ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी, धर्मास्तिकाय के संख्यात भाग को स्पर्श नहीं करती, अपितु असंख्यात भाग को स्पर्श करती है। इसी प्रकार संख्यात भागों को, असंख्यात भागों को या समग्र धर्मास्तिकाय को स्पर्श नहीं करती / 18. इमोसे गं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए घणोदही धम्मत्यिकायस्स कि संखेज्जइभाग फुसति?। जहा रयणप्पभा (सु. 17) तहा घणोदहि घणवात-तणुवाया चि / [18 प्र. भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी का घनोदधि, धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग को स्पर्श करता है ; यावत् समग्र धर्मास्तिकाय को स्पर्श करता है ? इत्यादि पृच्छा। [18 उ.] हे गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के लिए कहा गया है, उसी प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि के विषय में कहना चाहिये / और उसी तरह घनवात और तनुवात के विषय में भी कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy