________________ द्वितीय शतक : उद्देशक-१० ] [ 243 [7-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / अर्थात्-धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता। [2] एवं दोण्णि तिणि चत्तारि पंच छ सत्त अट्ट नव दस संज्जा प्रसंखेज्जा भते ! धम्मत्यिकायप्पदेसा 'धम्मत्यिकाए' त्ति वत्तव्वं सिया? गोयमा ! णो इण8 सम?। [7-2 प्र.| भगवन् ! क्या धर्मास्तिकाय के दो प्रदेशों, तीन प्रदेशों, चार प्रदेशों, पांच प्रदेशों, छह प्रदेशों, सात प्रदेशों, आठ प्रदेशों, नौ प्रदेशों, दस प्रदेशों, संख्यात प्रदेशों तथा असंख्येय प्रदेशों को 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है ? [7-2 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / अर्थात्-धर्मास्तिकाय के असंख्यात-प्रदेशों को भी धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता। [3] एगपदेसूणे वि य णं भाते ! धम्मस्थिकाए 'धम्मस्थिकाए' त्ति वत्तव्वं सिया ? णो इण? सम?। {7.3 प्र.] भगवन् ! एक प्रदेश से कम धर्मास्तिकाय को क्या 'धर्मास्तिकाय' कहा जा सकता है ? [7-3 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं; अर्थात्-एक प्रदेश कम धर्मास्तिकाय को भी धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता / [4] से केणठेणं भते ! एवं वुच्चइ 'एगे धम्मस्थिकायपदेसे नो धम्मस्थिकाए त्ति वत्तव्य सिया जाव (सु. 7 [2]) एगपदेसूणे विय णं धम्मत्यिकाए नो धम्मत्थिकाए ति वत्तव्वं सिया ?' से नणं गोयमा ! खंडे चक्के ? सगले चक्के ? भगवं ! नो खंडे चक्के, सगले चक्के / एवं छत्ते चम्मे दंडे दूसे प्रायुहे मोयए। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ–एगे धम्नस्थिकायपदेसे नो धम्मस्थिकाए ति वत्तच्च सिया जाव एगपदेसूणे वि य गं धम्मत्यिकाए नो धम्मस्थिकाए त्ति क्त्तव सिया'। [7-4 प्र. भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश को यावत् एक प्रदेश कम हो, वहाँ तक उसे धर्मास्तिकाय नहीं कहा जा सकता ? [7-4 उ.] गौतम ! (यह बतलायो कि) चक्र का खण्ड (भाग या टुकड़ा) चक्र कहलाता है या सम्पूर्ण चक्र चक्र कहलाता है ? (गौतम--) भगवन् ! चक्र का खण्ड चक्र नहीं कहलाता, किन्तु सम्पूर्ण चक्र, चक्र कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org