________________ पंचमो उदेसओ : पंचम उद्देशक चतुर्विध क्षद्रयुग्म-भवसिद्धिक नैरयिकों की उपपात-सम्बन्धी विविध प्ररूपणा 1. भवसिद्धीयखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कसो उववज्जति ? कि नेरहए ? एवं जहेव प्रोहियो गमलो तहेव निरवसेसं जाव नो परप्पयोगेणं उववति / 61 प्र. भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्मराशिप्रमित भवसिद्धक नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों से ? इत्यादि प्रश्न / [1 उ.] गौतम ! इनका सारा कथन प्रोधिक गमक के समान जानना चाहिए यावत् ये परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। 2. रतणप्पभपुढविभवसिद्धोयखुड्डागकडजुम्मनेरतिया f0 ? एवं चेव निरवसेसं। [2 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्मराशिप्रमित भवसिद्धिक नरपिक कहां ने आकर उत्पन्न होते हैं ? [2 उ.] गौतम ! इनका समग्र कथन पूर्ववत् जानना / 3. एवं जाव अहेसत्तमाए / [3] इसी प्रकार यावत् अवःसप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए / 4. एवं भवसिद्धोयखुड्डातेयोगनेरइया वि, एवं जाव कलियोगो ति, नवरं परिमाण जाणियध्वं, परिमाणं पुश्वभणियं जहा पढमुद्देसए / सेवं भंते ! सेवं भंते ! तिः / // इक्कतोसइमे सए : पंचमो उद्देसओ समतो।। 31.5 // [4] इसी प्रकार भवसिद्धिक क्षुद्रव्योजराशिप्रमाण नैरयिक के विषय में भो, तथा यावत् ..."कल्योज पर्यन्त जानना चाहिए / किन्तु इनका परिमाण जान लेना चाहिए / परिमाण पूर्वकथित प्रथम उद्देशक के अनुसार जानना / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गौतमस्वामो यावत् विचरते हैं / // इकलीसवां शतक : पंचम उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org