________________ इकतीसवां शतक : उद्देशक 4] विवेचन-कापोतलेश्या-सम्बन्धी नरयिकोत्पत्ति- इस चतुर्थ उद्देशक में कापोतलेश्या वाले नैरयिकों की उत्पत्ति का निरूपण है। कापोतलेश्या प्रथम, द्वितीय और तृतीय नरक में होती है। इसलिए एक सामान्यदण्डक और इन तीनों के तीन अन्य दण्डक, यों इस उद्देशक में चार दण्डक हैं / सामान्यदण्डक में रत्नप्रभापृथ्वी के समान उपपात जानना चाहिए।' // इकतीसवाँ शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त // 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 950 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org