________________ नवमो उद्देसो : दीव (समयखेत्त) नवम उद्देशक : द्वोप (समयक्षेत्र) समयक्षेत्र-सम्बन्धी प्ररूपणा 1. किमिदं भंते ! 'समयखेते ति पवुच्चति ? गोयमा ! प्रड्वाइज्जा दीवा दो य समुद्दा-एस णं एवतिए 'समयखेत्ते' त्ति पवुच्चति / 'तत्य गं अयं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुदाणं सम्बन्भंतरए' (जीबाजीवाभि० सू. 124 पत्र 177) एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्या जाव अभितरं पुकावरद्ध जोइसविहूर्ण / ॥वितीय सए नवमो उद्देसो समत्तो॥ [1 प्र.] भगवन् ! यह समयक्षेत्र किसे कहा जाता है ? [1 उ.] गौतम ! अढाई द्वीप और दो समुद्र इतना यह (प्रदेश) 'समयक्षेत्र' कहलाता है / इनमें जम्बूद्वीप नामक द्वीप समस्त द्वीपों और समुद्रों के बीचोबीच है। इस प्रकार जीवाभिगम सूत्र में कहा हुमा सारा वर्णन यहाँ यावत् अाभ्यन्तर पुष्कराद्ध तक कहना चाहिए; किन्तु ज्योतिष्कों का वर्णन छोड़ देना चाहिए। विवेचन--समयक्षेत्र सम्बन्धी प्ररूपणा–प्रस्तुत नौवें उद्देशक में एक सूत्र द्वारा समयक्षेत्र के स्वरूप, परिमाण प्रादि का वर्णन जीवाभिगम सूत्र के निर्देशपूर्वक किया गया है / समयक्षेत्र : स्वरूप और विश्लेषण---समय अर्थात् काल से उपलक्षित क्षेत्र 'समयक्षेत्र' कहलाता है। सूर्य की गति से पहचाना जाने वाला दिवस-मासादिरूप काल समयक्षेत्र-मनुष्यक्षेत्र में ही है, इससे आगे नहीं है; क्योंकि इससे आगे के सूर्य चर (गतिमान) नहीं हैं, अचर हैं। समयक्षेत्र का स्वरूप-जीवाभिगम सूत्र में मनुष्यक्षेत्र (मनुष्यलोक) के स्वरूप को बताने वाली एक गाथा दी गई है "अरिहंत-समय बायर-विज्ज-णिया बलाहगा अगणी। प्रागर-णिहि-णई-उबराग-णिग्गमे वुड्ढिवयणं च / / " अर्थात्-मानुषोत्तर पर्वत तक मनुष्यक्षेत्र कहलाता है / जहाँ तक अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org